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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१] शापूर्वक शास्त्रार्थ करनेको तैयारहो, हमने तो इनका सत्य निर्णय अ. च्छी तरहसे करलियाहै,तोभी इन शास्त्रार्थ सत्यनिर्णय ठहरेगा सो मंजूर है, इसलिये जो महाशय ऊपरकी भूलोसंबंधी शास्त्रार्थ करना चाहते होवें, वो अपनी सहीसे अपना प्रतिज्ञा पत्र जाहिर रूपसे ह. मको भेजे.समय, स्थान, नियम, साक्षि वगैरह की व्यवस्था तो सबके अनुकूल उसी राज्यके नियममुजब होसकेगी, विशेष क्या लिखें। पर्युषणा संबंधी मंतन्यके कथनका संक्षिप्त सार. १- जैनटिप्पणाके अभावसे लौकिक टिप्पणामुजब मास-पक्ष-तिथि-वर्ष वगैरह माननेका व्यवहार करना और पर्युषणादि धार्मिक कार्योंका व्यवहार जैन सिद्धांतोके अनुसार करना. तथा जैनसिद्धांतोके अनुसार या लौकिक टिप्पणाके अनुसारभी अधिक महीनेके ३० दिनोको दान, पुण्य, परोपकार, जप, तप, धर्म ध्यानादि करने में व ब्रह्मचर्य पालने में या देशविरती-सर्वविरती संयम पालनेमें, तथा कर्मबंधनकी स्थितिके प्रमाणमें और कर्मोंकी निर्जरा करने वगैरह कार्यों में गिनतीमें लियेजातेहैं, तैसेही ५० दिन प्रतिबद्ध पर्युषणापर्व का आराधन करनेमेभी उसके३० दिन गिनतीमें लेकर खरतरगच्छ, तपगच्छादिककी कल्पसूत्रकी टीकाओके "पंचाशैतव दिनैः पर्युषणा संगतेति वृद्धाः" इसवाक्यमुजब अभी दूसरेश्रावणमें या प्रथम भाद्रपद,५०दिने पर्युषणापर्वकरना, यही शास्त्रानुसार जिनाशा है। २-मास प्रतिबद्ध कार्य तो एक महीनेकी जगह दूसरे महीनेमेभी करनेमें आवे, तो भी कोई शास्त्रमें उनका दोष नहीं बतलाया. मगर पर्युषणापर्व करनेमें तो ५०दिनकी जगह ५१दिनभी कभी नहींहोस. कते, इसलिये बिनामुहूर्तवाले ५० दिन प्रतिबद्ध पर्युषणापर्वके साथ मास प्रतिबद्ध या मुहूर्त प्रतिबद्ध होली, ओली, दीवाली, दशहरा, अक्षयतृतीया,पौष-श्रावणादिक महिनों के कल्याणकादितप,या यज्ञोपवित, दीक्षा, प्रतिष्ठा, विवाह सादी वगैरह कोईभी कार्योंका संबंध नहीं है । जिसपरभी दिन प्रतिबद्ध पर्युषणापर्व आराधन करनेकी चर्चामें मासप्रतिबद्ध या मुहूर्त प्रतिबद्ध कार्योंकी बात बीचमें लाते हैं. वो लोग पर्युषणापर्वकरने संबंधी शास्त्रकार महाराजोका आशय नहीं जानने वाले होनेसे, शास्त्रोंकी आशा विरुद्ध होकर व्यर्थही कुयुक्तियोंसे विषयांतर करके भोले जीवोंको उन्मार्गमें गेरते हैं। For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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