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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४१ ] त्वकी प्राप्ति होती है तो फिर दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्यषणा करमा सो तो कदापि श्रीजिनाज्ञामें नहीं आ सकता है से भी विवेकी पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे; और शास्त्रानुमार भावपरंपरा करके तथा युक्ति पूर्वक और लौकिक व्यवहार मुजब अधिक मास होनेसे नैमित्तिक कार्य आगे पीछे दोनों मासमे करने में आते हैं सोता सातवें महाशयजीके पूर्वजने भी लिखा है जिसका पाठ ऊपरही लिखने में आया है तथापि सातवें महाशयजो प्रथम मासको छोडकरके दूसरे मासमें नैमित्तिक कार्य करने के लिये "वैसा नहीं करोगे तो विरोधके परिहार करने में भाग्यशाली नहीं बनोगे ऐसे अक्षर लिखके प्रथम मासमें नैमित्तिक कार्य करने वालोंके विरोध दिखाते हैं से कोई भी शास्त्र के प्रमाण बिना अपनी मति कल्पनासे भोले जीवोंको भ्रममे गेरने के लिये अपने पूर्वजके वचनको भी विरोध दिखाने वाले सातवें महाशयजी जैसे कलियुगि विनीत प्रगट हुवे है से तो अपने पूर्वजोंको खेटे कहके आप भले बनते हैं इसलिये आत्मार्थियोंको इन्हकी कल्पित बात प्रमाण करने योग्य नही है, और (कदाग्रह न छूटे तो भले स्वपरंपरा पाला) सातवें महाशयजीका यह भी लिखना भोले जीवोंको कदाग्रहमें फंसाकर मिथ्यात्व को बढ़ानेवाला है सो ते इसीही ग्रंथके पृष्ठ ३६५ से ३४२ तकका लेख पढनेसे मालूम हो सकेगा परंतु सातवें महाशयजीने जपरके लेखमें अपने अन्तरके भावका सूचन किया मालूम होता है क्योंकि सातवें महाशयजी बहुत वर्षांस काशी में ठहर कर अपनी विद्वत्ता प्रगट कर रहे हैं For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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