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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३८१ ] भड़के दूषणसे डरनेवाले अन्य कल्पना कदापि नहीं करेंगे सो विवेकी सज्जन स्वयंविचार लेवेंगे। और सातवें महाशयजी १६ दिनका पक्षमें १५ दिनके क्षामणे करनेसे एक दिनका प्रायश्चित बाकी रहने संबंधी और १४ दिनका पक्षमें भी १५ दिनके क्षामणे करने से एकदिन का बिना पाप किये भी प्रायश्चित ज्यादा लेने सम्बन्धी ऊपरके लेखसे ठहराते हैं सो निःकेवल अज्ञातपनसे व्यवहार नयका भङ्ग करते हैं जिससे श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उल्लंघन रूप उत्सूत्र भाषक बनते हैं सो भी पाठकवर्ग विचार लेवेंगे। ___ और यद्यपि श्रीजैनपञ्चाङ्ग की गिनतीसें तिथि की वृद्धि होनेका अभाव था तथा पौष और आषाढ़ मासकी सृद्धि होनेका नियम था परन्तु लौकिक पञ्चाङ्गमें तिथि की वृद्धि होनेका गिनती मुजब नियम है और हरेक मासोंकी वृद्धि होनेका भी नियम है। जब जैन पञ्चाङ्गके बिना लौकिक पञ्चाङ्ग मुजब तिथि की रद्धिको सातवें महाशयजी मान्य करके सोलह (१६) दिनका पक्षको मंजूर करते हैं तो फिर लौकिक पञ्चाङ्गानुसार प्रावण भाद्रपदादि मासोंकी वृद्धि होती है जिसको मान्य नहीं करते हुवे उलटा निषेध करनेके लिये पर्युषणा विचारके लेखमें वृथा क्यों परिश्रम करके निष्पक्ष. पाती विवेकी पुरुषोंसे अपनी हांसी कराने में क्या लाभ उठाया होगा सो मध्यस्थ दृष्टिवाले सज्जन वयं विचार लेवेंगे और ( जैसे तुम्हारे मतमें 'चउरहं मासाणं' इत्यादि पाठ कहने से अधिक मासका प्रायश्चित्त रह जाता है) सातवें महाशयजीके ऊपरके लेखपर मेरेको इतनाही कहना है कि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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