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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३६५ ] निषेध करने के लिये कटिबद्ध तैयार है तो फिर तेरह मार छवीस पक्ष कहेंगे ऐसा तो संभव ही नहीं हो सकता है जब अधिक मासको गिनतीमें लेनेको ही जिन्हको लज्जा आती है तो फिर तेरह मास छवीश पक्ष कहना तो विशेष उन्हको लज्जाकी बात होवे तो कोई आश्चर्य नहीं है। ___ और सातवें महाशयनी शास्त्रोंके पाठ मंजूर करने वाले होवें तो फिर अधिक मासको श्रीअनंत तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने प्रमाण किया है जिसका अधिकार इसी ही ग्रन्थके पृष्ठ ३२ से ४८ तक वगैरह कितनी ही जगह रुप गया है और सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते का उच्चारण किये पीछे इरियावही करनी वगैरह अनेक बातें शास्त्रों में विस्तारपूर्वक कही है जिसको तो प्रमाण न करते दुवे उलटा उत्थापन करते हैं फिर शास्त्रके पाठकी बात करमा सो कैसी विद्वत्ता कही जावे इस बातको पाठक. वर्ग भी विचार सकते हैं। शंका-अजी आप ऊपरमें अनेक शाखोंके प्रमाणों से और युक्तियों से तेरह मास छबीश पक्षकी गिनती करके उतनीही आलोचना लेकर उतनेही क्षामणे सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करनेका दिखाते हो परन्तु सांवत्सरिक प्रति क्रमणकी विधिमें १३ मास, २६ पक्षके, क्षामणे करके उतने ही मासोंकी मालोचमा लेनी किसी शावमें यों नहीं डिसी है। समाधान-भो देवानुप्रिय ! सांवत्सरिक प्रतिक्रमणकी विधि में १३ मास, २६ पक्ष के क्षामणे करके उतने ही मास पक्षोंकी आलोचमा लेनी किसी भी शास्त्र में नहीं लिखी है यह तेरा कहना अज्ञात सूचक है क्योकि श्रीमाब For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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