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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ६६४ ] सारोद्वारमें १४, तथा तवृत्तिमें १५, श्रीज्योतिष करगड. पयन्नामें १६, तथा तवत्तिमें १७, इत्यादि अनेक शास्त्रों में मास वृद्धि होनेसें अभिवर्द्धित संवत्सरके १३ मास, २६ पक्ष खुलासा पूर्वक लिखे हैं और लौकिकपञ्चाङ्गमें भी अधिक मास होनेसे तेरह मास छवीश पक्षका वर्ष लिखा जाता है और सब दुनिया भी धर्मकर्मके व्यवहारमें अधिकमासके कारणसें तेरह मास छवीश पक्षको मान्य करती है उसी मुजबही सब जैनी लोग भी वर्तते हैं इसलिये अधिक मासके होनेसे तेरह मास, छवीश पक्षका धर्म, पापको गिनती में लेकर उतनेही महिनोंके धर्मकार्योंकी अनुमोदना और पाप कार्यों की आलोचना लेनी शास्त्रानुसार और युक्तिपूर्वक है क्योंकि अधिक मास होनेसे तेरह मास छवीश पक्ष में धर्म, और अधर्म, करके धर्मकायाकी गिनती नहीं करना और पापकायाकी आलोचना नहीं करना ऐसातो कदापि नहीं हो सकता है। और जब श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने अधिकमासको गिनतीमें प्रमाण किया है और अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह मास छवीश पक्षका कहा हैं तो फिर श्री तीर्थङ्कर गपधरादि महाराजोंके विरुद्ध अपनी मतिकल्पनासे बारह मास चौवीश पक्ष कहके एक मासके दो पक्षोंको छोड़ देना और श्रीअनन्त तीर्थकर गणधरादि महाराजोंका कहा हुवा अनिवर्द्धित संवत्सरके नामका खंडन करना बुद्धिमान कैसे करेंगे अपितु कदापि नहीं। और श्रीअनन्त तीर्थंकर गणरादि महाराजोंने अधिक मासको गिनती में प्रमाण किया है तथापि साहवें महाशयजी सत्सूत्र भाषक होकरके उसीका For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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