SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 489
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ३५७ ] करके विष मिश्रित दवा देकर रोगीको मृत्युके सरण प्राप्त करने वाला वैद्य नाम धारक पुरुष महापापी होता है तैसेही कर्मरूपी रोग से पीड़ित भव्यजीवोंको उत्तम रीतिका उपदेश देनेके भरोसे विश्वासघात से उत्सूत्र भाषणरूप कल्पित कुयुक्तियों का विष मिश्रित उपदेश करके भव्यजीवों को श्रीजिनाज्ञारूप सम्यक्त्वरत्न जीवतव्यसे भ्रष्ट करके मिथ्यात्वरूप मरणके सरण प्राप्त करनेवाला वेषधारी साधु नाम धारक पुरुष महापापी होता है तैसेही सातवें महाशयजीने भी पर्युषणा विचार के लेख में भव्यजीवों को उत्तम रीतिका उपदेश करनेके बहाने उत्सूत्र भाषणरूप कुतकका विष मिश्रित उपदेश करके भव्यजी बांको मिथ्यात्वरूप मृत्युके सरण प्राप्त किये हैं इसलिये भव्य जीवोंको मिध्यात्वरूप मृत्युके सरण प्राप्त करनेके दोषाधिकारी सातवें महाशयजी है यदि सातवें महाशयजीको ऊपरोक्त दूषण के फल विपाकका भय होवे तो अपने कृत्यकी आलोचना लेवेंगे - Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir और अपने कदाग्रहकी कल्पित बातको जमानेके लिये उत्सूत्र भाषणकी और कुयुक्तियोंकी बातें लिखनेवालेका परिणाम भी अच्छा नही होता है तथा क्रिया भी अच्छी नहीं होती है और उपयोग भी अच्छा नही होता है इसलिये पर्युषणा विचारके लेखक अपनेको अच्छा फलको चाहना करते हैं सो कदापि नही हो सकेगा किन्तु पर्युषणा विचार के लेखमें शास्त्रकारों के विरुद्धार्थमें उत्सूत्र भाषणोंकी तथा कुयुक्तियोंकी और शास्त्रानुसार वर्त्तने वालोंकी झूठी निन्दा करके मिथ्या दूषण लगानेकी कल्पना भरी होनेसे For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy