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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३५० ] है कि-खास सातवें महाशयजीकेही परमपूज्य श्रीतपगच्छके ही प्रभाविक श्रीदेवेन्द्रसूरिजीने श्रीश्राद्धदिनकृत्य मूत्रकी वृत्तिमें, श्रीकुलमण्डनसूरिजीने श्रीविचारामृतसंग्रहनामा ग्रन्थमें, श्रीरत्नशेखरसूरिजीने श्रीवन्दीता सूत्रकी पत्तिमें, और श्रीहीरविजय सरिजीके सन्तानीये श्रीमानविजयजीने तथा श्रीयशोविजयजीने श्रीधर्मसंग्रहकी वृत्तिमें खुलासा पूर्वक सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही करना कहा है इन महाराजांको सातवे महाशयजो शुद्धपरूपक आत्मार्थी श्रीजिनाज्ञाके आराधक बुद्धि निधान कहते हैं जिसमें भी विशेष करके श्रीयशोविजयजीके नाम सें श्रीकाशी ( धनारसी ) नगरीमें पाठशाला स्थापन करी है तथापि उन महाराजोंके कहने मुजब सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंतेको प्रमाण नहीं करते हैं फिर उन महाराजांको पूज्य भी कहते हैं यह तो प्रत्यक्ष उन महा. राजोंके कहने पर तथा पञ्चाङ्कीके शास्त्रों पर श्रद्धा रहितका ममूना है। यदि सातवें महाशयजो अपने गच्छके प्रभाविक पुरुषों के कहने मुजब तथा श्रीयशोविजयजीके नामसे पाठशाला स्थापन करी है उन महाराजके कहने मुजब वर्त्तने वाले,तथा उन महाराजांके पूर्णभक्त,और पञ्चाङ्गीके शास्त्रों पर श्रद्धा रखने वाले होवेंगे,तब तो सामायिकाधिकार प्रथम करेमिभंतेको प्रमाण करके अपने भक्तोंसें जरूरही करावेंगे तो सातवें महाशयजीको आत्मार्थी समझने में आवेंगा । सामा. यिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते २१ शास्त्रों में लिखी है परन्तु प्रथम इरियावही किसी भी शास्त्र में नहीं लिखी है इसका खुलासा पूर्वक निर्णय इसीही ग्रन्थके पृष्ठ ३१० से ३२९ सक For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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