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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३२७ ] रहित अविसंवादीपने ग्रन्थ रचना करते हैं तथापि न्याने जैन ना० पु. के पृष्ठ ४७ में श्रीखरतरगच्छनायक श्रीनवाणी वृत्तिकार सुप्रसिद्ध श्रीमदभयदेव सूरिजी महाराजको और श्रीतपगच्छनायक सुप्रसिद्ध श्रीमद्देवेन्द्रसूरिजी महाराजको विसंवादी पूर्वापर विरोधि लिखनेवाले ठहराये हैं सो भी उत्सूत्र भाषण है इसका विस्तारसें निर्णय 'आत्म० के' पृष्ठ १९७ से २१६ तक छपगया हैं। १८ अठारहमा-श्रीखरतरगच्छके श्रीवर्द्धमानसूरिजीने आचारदिनकर नामा ग्रन्थमें सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही खुलासा पूर्वक लिखी है जिसका तात्पर्य समझे विना न्याने 'जैन ना० पु. के' पृष्ठ ४८ के आदिमें सामायिकमें प्रथम इरियावही स्थापन करने के लिये परिश्रम करके लिखा है सो भी उत्सूत्र भाषणरूप है इसका निर्णय 'आत्म० के' पृष्ठ २१९ ॥ २२० । २२१ तक छप गया है। १९ एकोनवीशहमा-श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी महान् परम्परानुसार श्रीखरतरगच्छमें प्रथम करेमिभंतेके उच्चारण करनेका अखण्डित व्यवहार आज तक चला आता है तथापि न्या० ने 'जैन ना० पु०' के पृष्ठ ४८ के मध्य में प्रथम इरियावहीकी परम्परा ठहराई हैं सो भी उत्सूत्र भाषण है इसका निर्णय 'आत्म० के पृष्ठ' २२३-२२४ में छपगया है। ___ २० वीशहमा-श्रीआवश्यकचूर्णि, वहत्ति , लघुत्ति , श्रीपञ्चाशकवृत्ति, चूर्णि, श्रीयोगशास्त्रवृत्ति, वगैरह अनेक शास्त्रोंकी सामायिक बिधिको न्याने 'जैन० ना० पु० के' For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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