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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २६ ] बृहत्कल्पचूाण, पर्युषणाकल्पचूर्णि, वृत्ति आदि अनेकशास्त्रों में लिखे जब वर्ष अमावसे आसोजमें विहार करें; तो ७० दिनसे कमती. भी ४० दिन, या ४५-५० दिनभी होते हैं । देखो - पहिले ५० दिने वा र्षिक कार्य जब लग नहीं करें; तब तक विहार करनेमें आताथा. मग. र अभी वर्तमान में तो आषाढ चौमासी बाद विहार करनेकी रूढी नहीं है । तैसेही पहिले वर्षाके अभाव से आसोजमै भी विहार करते. थे, मगर अभीतो वर्षा नहींहोवे रस्तोंके कीचड सुककर रस्ते लाफ होगयें हो तो भी कार्त्तिक पूर्णिमा पहिले आसोज में विहार करने की रूढी नहीं है, इसलिये वर्षाके अभावले आसोज में विहार नहीं कर सकते और कभी दो आसोज होवें तो भी कार्त्तिक तक १०० दिन ठहरतेहैं । इसलियेभी ७० दिनका हमेशां नियत नियम नहीं है । इस बातको विशेष तत्त्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेंगे । 1 २७ - महीना बढे तब होली, दीवाली वगैरह लौकिक पर्व पहिले महीने में होवें या दूसरे महीने में होवें ? ce देखो कितनेक पर्व पहिले महीने में होते हैं, और कितनेक प र्व दूसरे महीने में भी होते हैं. जब दो भाद्रपद होयेंगे, तब जन्माष्टमी का पर्व पहिले भाद्रपद में करते हैं, और गणेश चौथका पर्व दूसरे भाद्रपद में करते हैं. तथा जब दो आसोज होवेंगे तब श्राद्धपक्ष पहिले आसोज में करते हैं, और दशहराका पर्व दूसरे आसोज में करते हैं. तथा दो कार्त्तिक होवे तब दीवाली पर्व पहिले कार्तिक में करते हैं. इसीतरहसे बारहहीमासोंके पर्व कार्य कृष्णपक्षसंबंधीपर्व पहिले म हीने में और शुक्लपक्ष संबंधी पर्व दूसरे महीने में समझ लेना. और मलमासो द्वेधा अधिक मासः - क्षयमा सचेति । तदुक्तं काठकगृहो । यस्मिन् मासे न संक्रांतिः, संक्राति द्वयमेव वा मलमासो स विज्ञेयो मासः स्यात् तु त्रयोदशः । तथा च उकं हेमाद्रि नागर खंडे । नभो वा नभस्यो वा मलमासो यदा भवेत् सप्तमः पितृपक्षः स्यादन्यत्रेव तु पंचमः । इत्यादि " निर्णय सिंधु, धर्मसिंधु, निर्णयदीपकादि लौकिक धर्मशास्त्रोंके प्रमाणानुसार, आषाढ चौमासीसे पांचवा पितृपक्ष (श्राद्धपक्ष ) होता है, मगर जब श्रावण, भाद्रपद बढ़ें तब उस की गिनती से सातवा [ ७ ] श्राद्धपक्ष होता है, इसलिये लौकिकवाले भी अधिकमहीने के ३० दिन गिनती में लेते हैं. जिसपरभी लौकिकवाले अधिकमहीनेके ३० दिन गिनती में नहींलेते, या प्रथम महीने में दीवाली For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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