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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३०६ ] मामा छोटीसी पुस्तकको देख करके छठे महाशयजी श्रीवल्लभ विजयजी और श्रीकलकत्तानिवासी लक्षमीचन्दजी सीपाणी वगैरह महाशय कहते फिरते हैं कि-देखो प्रथम वाद विवाद का कारण खरतरगच्छवालोंकी तरफसे होता है जिसका नमूनारूप प्रश्नोत्तरमालिका नामा पुस्तक लोगोंको दिखाते हैं परन्तु प्रश्नोत्तरमालिका पुस्तक बननेका कारण समझे बिना द्वेष बुद्धिसें मिथ्या भाषण करके प्रथम वाद विवादके कारण करनेका श्रीखरतरगच्छवालोंको झूठा दूषण लगाते हैं क्योंकि प्रथम रतलामसें श्रीतपगच्छके श्रावक वृद्धिचन्दजी छोगालालजी गांधीने श्रीहेदरावादमें चौमासा ठहरे हुवे न्यायरत्नजी श्रीशान्तिविजयजीको पत्र द्वारा, पांच-छ कल्याणकादि सम्बन्धी कितने ही सवाल पूछे जिसके जबाब सप्टेम्बर मासकी २७ वी तारीख सन् १९०८ आश्विन शुदी २ वीर संवत् २४३४ के जैनपत्रका २४ वां अङ्कके पृष्ट ४ में छपे हैं उसी में श्रीखरतरगच्छवालोंको श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक सम्बन्धी पूछा तब उसीके निमित्त कारणसे उसीका जबाब रूपमें श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणकसम्बन्धी शास्त्रोंके पाठों सहित कितनेही शास्त्रानुसार सवालों पूर्वक--प्रश्नोत्तरमालिका नामा पुस्तक छपी है इसलिये प्रश्नोत्तरमालिका छपने के निमित्त कारण श्रीशान्तिविजयजी है जो श्रीशान्ति विजयजी श्रीखरतरगच्छवालोंको श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक सम्बन्धी नही पूछते तो श्रीखरतरगच्छवालोंको उसीका जबाबरूपमें प्रश्नोत्तरमालिका छपा करके प्रगट करनेकी कोई जरूरत नही थी परन्तु प्रथम जो कोई सवाल पूछेगा उसीका जवाब तो शास्त्रानुसार अवश्यही देना सो न्याय For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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