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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३०५ ] और आगे फिर भी छठे महाशयजीने लिखा है कि ( अमो नहोता धारताके महात्मा मुनि मोहनलालजीना काल पछी अहवो पण काल आवशे के जे आपसमां जंजाल फेलावी फालमारी पायमालकरी हाल बेहाल करी देशे पण अवितव्यताने कोण रोके) इत्यादि अनेक तरहके अनुचित शब्द लिखके श्रीमोहनलालजी पर तथा उन्होंके समुदाय वालों पर द्वेषबुद्धिसे खूबही कटाक्ष करके नाटकरूपसे कितनीही बातों में उन्होंको कलङ्क लगाया है उसीका भी यक्ति पूर्वक जबाब यहां लिखनेसें बहुतही विस्तार होजावे इस लिये श्रीमोहनलालजीके तथा उन्होंके संप्रदायके पूर्णप्रेमी और गुरुभक्त (पन्यासजी श्रीजशमुनिजी, पन्यासजी श्रीहर्षमुनिजी, और पन्यासजी श्रीकेशरमुनिजी वगैरह मंडली के साधओंमेंसे) जो महाशय होवेंगे सो दंभप्रियजीके लेखका जबाब लिखके श्रीमोहनलालजीका तथा उन्होंकी समुदाय वालोंका कलङ्कको दूर करेगा। और इसके आगे फिर भी लिखा है कि (प्रश्नोत्तरमालिका नामे अक चोपड़ी रतलाममां वीरसंवत् २४३५ नाकारतक सुदीपाँचमें बेरिस्टरनूखोटुं नाम लखी छपाववामां आवेल छे जेमा तपगच्छ उपर हुमलोकर्या सिवाय बीजुकाई पण मालम पड़तु मथी कारणके जेजे सवालो लख्याछे प्रायःसर्वना उत्तरो कलकत्ता थी प्रगट थयेल चोपडीना उत्तर रूपे जैन सिद्धान्त समाचारी नामे भावनगरनी जइन धर्मप्रसारक सभा तरफ थी छपायेल चोपड़ीमां आवी गयेल छे ) छठे महाशयजीके ऊपरका लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हुं जिसमें प्रथमतो-प्रश्नोत्तरमालिका, For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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