SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २८ ] साम्वत्सरिक प्रतिक्रमणादि पांच कृत्योंसे वार्षिकपर्व करमेका समझना चाहिये क्योंकि जहां प्रसिद्ध पर्युषणा वहांही वार्षिक कृत्यादि करनेका नियम है सो तो श्रीकल्पसूत्रकी नव () व्याख्यायोंमें श्रीखरतरगच्छके और श्रीतपगच्छा दिके सबी टीकाकारोंने खुलासा पूर्वक लिखा है इसका विस्तार इसीही ग्रन्थकी आदिसें लेकर पृष्ठ २० तक छप गया है और उन्ही टीकाओं में पचास दिने भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पांच कृत्योंसें वार्षिक पर्वरूप प्रसिद्ध पर्युषणा करनी कही है सो तो मास वृद्धिके अभावसे चन्द्रसंवत्सर में नतु मासवृद्धि होते भी अभिवर्द्धित संवत्सरमें क्योंकि प्राचीनकालमें भी पौष अथवा आषाढ़ मासको द्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सरमें वीश दिने श्रावणशुक्ल पञ्चमीको सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पाँच कृत्योंसे प्रसिद्ध पर्युषणा जैनपञ्चाङ्गानुसार करने में आती थी इस बातका निर्णय श्रीकल्पसूत्रकी टीकाओं में तथा इसीही ग्रन्थमें अनेक जगह और विशेष करके पृष्ठ १०७ से ११७ तक छप गया है परन्तु इस वर्तमान कालमें वीश दिने पर्युषणा करनेका कल्पविच्छेद होनेसें तथा जैन पञ्चाङ्गके अभावसें और लौकिक पञ्चाङ्गमें हरेक मासोंकी वृद्धि होने के कारणसे ५० दिनेही प्रसिद्ध पर्युषणा वार्षिक कृत्यादिसें करनेकी शास्त्रोंकी तथा श्रीखरतरगच्छके और श्रीतपगच्छादिके पूर्वज पूर्वाचार्योंकी मर्यादा है सो तो इस ग्रन्यकी आदिसेंही लेकर ऊपर तकमें अनेक जगह छप गया है और सातमें महाशयजी श्रीधर्मविजयजीके नामकी सभी क्षामें भी छपेगा ( और वर्षाकालमें जीवदयादिके लियेही For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy