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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २९७ ] इतनाही कहना है कि ५० दिने पर्युषणा करनेकी बुद्धि हैं तो फिर जानते हुवे भी तीसरे अभिनिवेशिक मिथ्यात्व के अधिकारी क्यों बनके पचाङ्गीका प्रमाण पूछकरके भोलेजीवों को संशयरूपी मिथ्यात्वका भ्रममें गेरे है और अधिकमास की गिनती निश्चय करके स्वयं सिद्ध है सो कदापि निषेध नहीं हो सकती है जिसका खुलासा इस ग्रन्थ में अनेक जगह छपगया है इसलिये दो श्रावण होते भी ८० दिने भाद्रपद में अथवा दो भाद्रपद होनेसे भी ८० दिने दूसरे भाद्रपद में पर्युषणा अपनी मति कल्पनासें श्रीजिनाज्ञाविरुद्ध क्यों करते है क्योंकि पचासवें दिन की रात्रिको भी उल्लङ्कन करनेवालेको शास्त्रों में आज्ञा विराधक कहा है इसलिये ८० दिने पर्युषणा करनेवाले अवश्यही आज्ञा के विराधक है यह तो प्रत्यक्ष सिद्ध है और ८० दिने पर्युषणा करनेका कोईभी श्रीजैनशास्त्रों में नहीं लिखा है परन्तु ५० दिने पर्युषणा करनेका तो पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रों में लिखा है सो इसीही ग्रन्थ में अनेक जगह छपगया है तथापि दंभप्रियजीने अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपद में ५० दिने पांच कृत्योंसें पर्युषणा वार्षिक पर्व करने संबंधी पंचांगीका पाठ पूछके भोले जीवोंको भ्रममें गेरे है सो दंभप्रियेजीके मिथ्यात्वका भ्रमको दूर करनेके लिये और मोक्षाभिलाषी सत्यग्राही भव्यजीवोंको निःसन्देह होनेके लिये इस जगह मेरेको इतनाही कहना है कि-श्रीकल्प सूत्र के मूलपाठ में ५० दिने पर्युषणा करनी कही है इसलिये श्रावणमास की वृद्धि होने में दूसरे श्रावण में अथवा भाद्रपदात की वृद्धि होने सें प्रथम भाद्रपद में जहां ५० दिन पूरे होवे वहांही प्रसिद्ध पर्युषणा में ३८ For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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