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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २ ] देखिये ऊपर के पाठमें पर्युषणाधिकारे चेव निश्चय करके अधिकमासको गिनतीमें कहा है और पूर्वधरादि उग्रविहारी महानुभावोंके लिये निवासरूप पर्युषणा (योग्यक्षेत्र तथा उपयोगी वस्तुयोंका योग होनेसे) उत्सर्गसे आषाढ़पूर्णिमाकोही करनी कही परन्तु योग्यक्षेत्रादिके अभावसे अपवादसे पांच पांच दिनकी वृद्धि करते अभिवर्द्धित संवत्सरमें वीश दिन (श्रावण शुक्लपञ्चमी) तक तथा चन्द्रसंवत्सरमें पचास दिन ( भाद्रपदशुक्लपञ्चमी ) तक पर्युषणा करनी कही-आषाढ़पूर्णिमाकी तथा पांच पांच दिन की वृद्धिको पर्युषणाको अधिकरणदोषोंकी उत्पत्ति न होने के कारण गृहस्थी लोगोंके न जानी हुई अज्ञात पर्युषणा कही है इसका विशेष खुलासा इन्ही ग्रन्थमें अनेक जगह छपगया है और वीशदिने तथा पचास दिने गृहस्थी लोगों की जानी हुई ज्ञातपर्युषणा कही उसीमें वार्षिक कृत्य वगैरह करनेमें आतेथे इसकाभी खुलासा इन्ही ग्रन्थ में अनेक जगह छप गया है जिसमें भी विशेष विस्तार पूर्वक पृष्ठ १०१ से ११७ तक अच्छी तरहसें निर्णय करने में आया है। और मासद्धिके अभावसे पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक ७० दिन रहते हैं तैसेहीमासद्धि होनेसें पर्यषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन रहते हैं इसका भी विस्तार अनेक जगह छपगया है जिसमें भी विशेष करके पृष्ठ १२० से १२९ तक और १७४ सें १८३ तक अच्छी तरहसें निर्णयके साथ छपगया है और उत्कृष्टसें १८० दिन का कल्प कहा है; और तीसरा श्रीजिनपतिसूरिजी कृत श्रीसमाचारी ग्रन्थकापाठलिख नाथा सोहीपाठ यहां दिखाताहूं यथा : For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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