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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २७९ ] करके उसी तरहके उत्सूत्र भाषणके फलप्राप्त करने के लिये आप भी उसीमें फसे, हाय अफसोस-गच्छ कदाग्रह के वस होकरके अपना पक्ष जमानेके लिये सत्य असत्यका निर्णय किये बिना अपनी मतिकल्पमासे इतने विद्वान् कहलाते भी स्वच्छन्दाचारीसें लिखते कुछ भी विचार नहीं किया यह तो इस कलियुगकाही प्रभाव है,___ और दूसरा यह है कि न्याय अन्यायको न देखने वाले तथा दृष्टिरागके झूठे पक्षग्राही और कदाग्रहके कार्यमें आगेवान ऐसे श्रीकलकत्तानिवासी श्रीतपगच्छके लक्ष्मीचंदजी सीपाणीको पालणपुरसे श्रीवलभविजयजीकी तरफका पत्र आया था उसी पत्रमें ६-७ जगह मिथ्या बातें लिखी है उसी पत्रके अक्षर अक्षरका उतारा, मेरे ( इस ग्रन्थकारके ) पास है उसी उतारेकी नकलको यहाँ लिखकर उसीकी समीक्षा करनेका मेरा पूरा इरादा था परन्तु विस्तारके कारणसे सब न लिखते नमुनारूप एक बात लिख दिखाता हूं छठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजी लक्ष्लीचन्दजी सीपाणीको लिखते हैं कि [ बनारससे पर्युषणा विचार नामा नेकट निकला है उसीकाही भाषान्तर छापेवालेने छापा है इसमें हमारा कोई मतलब नही है ना हम इस बातको मन वचन काया करके अच्छी समझते हैं] इस जगह सज्जन पुरुषोंको विचार करना चाहिये कि सीपाणीजीके पत्रमें पर्युषणा विधारको तथा उसीका भाषान्तर छापेवालेने छापेमें प्रसिद्ध करा है उसीको छठे महाशयजी मन, वचन, काया अच्छा नही समझते हैं For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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