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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २६७ ] कोर्ट कचेरीमें बड़ेही भारी झगड़ेके कारण करनेका लेख लिखने में तथा प्रसिद्ध करानेमें तो छठे महाशयजी श्रीवामविजयजी आपको खूब लम्बा चौड़ा समय भी मिल गया, और परस्पर आपसमें ईर्षाकी वृद्धि होनेका किञ्चित् भी भय न लगा परन्तु श्रीबुद्धिसागरजीके पत्रका जबाब खानगीमें लिखनेसें छठे महाशयजीको वृथा समय खोनेका तथा परस्पर ईर्षाकी वृद्धि करनेवाला काम करने का भय लगा, यह कैसी अलौकिक विद्वत्ताकी चातुराई ( सज्जन पुरुषोंको आश्चर्य उत्पनकारक ) छठे महाशयजी मापने गच्छ पक्षी दृष्टिरागी बालजीवोंको दिखाकर अपनी बातको जमाई सो आत्मार्थी विवेकी विद्वान् पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे। और आगे फिर भी छठे महाशयजी में लिखा है कि ( कितनेही समयसें गच्छ सम्बन्धी टंटा प्राय दबा हुआ है तपगच्छ खरतरगच्छ दोनोंही पक्ष प्रायः परस्पर संपसे मिले जुलेसें मालूम होते हैं ) इस लेख पर भी मेरेको यही कहना उचित है कि गच्छ सम्बन्धी टंटा दबाकरके शान्त करनेका और संपसें वर्तनेका श्रीखरतगच्छवालांकी महान् सरलताका कारण है क्योंकि श्रीतपगच्छके तो भाप जैसे अनेक महाशय संपके मूलमें अनी लगाके श्री खरतरगच्छवालोंकी सत्य बातका निषेध करनेके लिये सत्सूत्र भाषण करके अपनी मति कल्पनाकी मिथ्या बातका स्थापन करनेके लिये विशेष करके हर वर्षे गांम गांममें पर्युषणाके व्याख्यानाधिकारे श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञानुसार अनेक शास्त्रों के महत् प्रमाण मुजब अधिक मासकी For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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