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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अनन्त संसारकी वृद्विरुप यह भी महान् उत्सत्र भाषण है। १४ चौदहमा श्रीजैनशास्त्रोंमें षद्व्यरूप शाश्वती वस्तुयोंमेंसें कालद्रव्य रुपभी एक शाश्वती वस्तु है जिसका एक समयमात्र भी जो कालव्यतीत होजावे उसीका गिनती में कदापि निषेध नही हो सकता है यह अनादि स्वयं सिद्ध मर्यादा है तथापि आपलोग समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्षसे, दो पक्षका जो एकमास बनता हैं उसी को गिनतीमें निषेध करके अनादि स्वयं सिद्ध मर्यादाको अपनी कल्पनासे तोडमोडकरके ३० मासे-एकमासका गिनतीमें निषेध करनेके हिसावी,३० वर्षे-एकवर्ष, ३०युगेएकयुग, इसी तरहसे, ३० कोडा कोडी सागरोपमें-एक कोडाकोडी सागरोपमके कालको-उहा कर गिनतीमें निषेध करनेका वथा प्रयास करते हो सो भी यह महान् उत्सूत्र भाषण है। ___ और १५ पंदरहमा-जैनपञ्चाङ्ग का अबी वर्तमानकालमें विच्छेद है तथापि आपलोंगोंकी तरफसे मिथ्यात्वकी वृद्धिकारक मनमानी अपनी कल्पनाका पञ्चाङ्गको जैनपञ्चाङ्ग ठहराकर प्रसिद्ध करबाते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है - १६ सोलहमा-श्रीनिशीथसत्रके भाष्यादि शाखोंमें सूर्योदयकी पर्व तिधिको न माननेवालेको मिथ्यात्वी कहा है और लौकिक पञ्चाङ्क में दो चतुर्दशी वगैरह तिथियां होती है उसी में पर्वरुप प्रथम चतुर्दशी सूर्योदय से लेकर अहोरात्रि ६० घड़ी नक संपूर्ण चतुर्दशीका ही वर्ताव रहता है उसीमें अपर्व सूप त्रयोदशीके वर्तावका गन्ध भी नही है तथापि आप लोग अपने पक्षपातके जोरसें और पण्डिताभिमानका For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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