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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २३७ ] गिनती में लेनेवालोंको दूषण लगाना यह तो न्यायरत्नजीका हठवादसे प्रत्यक्ष अन्यायकारक है सो पाठकवर्ग भी विचार सकते है। ___और भी दूसरा सुनो-खास न्यायरत्न जीने संवत् १९६६ की सालका बयान याने शुभाशुभका फल संक्षिप्तसें जैनपत्र के साथ, जूदा हेण्डबिलमें प्रसिद्ध किया है उसी में [ इस वर्षमें श्रावण महिना दो है ऐसा लिखा है तथा अधिक मास के कारण दोनही श्रावणकी गिनती सहित तेरह मासों के प्रमाणसें तेरह अमावस्या और तेरह पूर्णिमाकी सब घड़ियोंकी गिनती दिखाइ है और प्रथम श्रावण वदी ११ तथा १२ के दिन और दूसरे श्रावण वदी १० के दिन अच्छा योग्य बताया है और प्रथम प्रावण शुदीमें सप्त नाड़ीचक्रमें सूर्य्य और गुरु जलनाड़ी पर आनेका लिखा है और प्रथम श्रावण शुदी पञ्चमीके दिन सिंह राशि पर शुक्र आनेका लिखा है फिर दूसरे श्रावण शुक्लपक्षमें बुधका उदय होगा वहां दुनियाके लोग सुखी रहनेका लिखा है फिर प्रथम श्रावण वदी ४ बुधवार तक दुर्मति नामा संवत्सर रहनेका लिखा है बाद याने प्रथम श्रावण वदी पञ्चमी गुरुवारका दुन्दुभि नामका संवत्सर लगनेका लिखा है फिर दूसरे श्रावणमें मीन राशि पर शनि और मङ्गल वक्र होनेका लिखा है ] इस तरहसें खुलासाके साथ न्यायरत्नजी अपने स्वहस्ते दोन श्रावण महिनोंको बरोबर लिखते है गिनतीमें लेते है छपाके प्रसिद्ध करते है ( और दोनु श्रावणके कारण मैं तेरह मासाँके ३८३ दिनका वर्ष दुनियामे प्रसिद्ध है) इस पर निष्पक्षपाती आत्मार्थी सज़्जन पुरुषोंको न्याय दृष्टि से For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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