SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १९७ ] जो ऊपर में श्लोक लिखके पर्युषणा पर्वका निषेध किया है उस सम्बन्धी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं जिनमें प्रथमतो शुद्धतमाचारीकारने इसीही नारचन्द्र के दूसरे प्रकरणका जो लोक लिखाथा उनीको भावार्थ सहित में ऊपर में लिख आया हु - जिसमें खुलासे लिखा है कि तेरहनात तक सिंहस्थ में और पौष तथा चैत्र ऐसे मलमासमें मुहूर्त्त के निमित्तिक शुभकार्य नही होते हैं परन्तु बिना मुहूर्त्त का धर्म कार्य करने में हरजा नही क्योंकि तेरहमासका सिंहस्थ में पर्युषणादि धर्मकार्य्यं तो अवश्य ही करने में आते है और पौषमास में श्रीपार्श्वनाथस्वामिजीका जन्म और दीक्षा कल्याणकके धर्मकार्य और चैत्रमासमें श्री आदिजिनेश्वर भगवान्का जन्म और दीक्षा कल्याणकके धर्मकार्य करने में आते हैं और चैत्रमासमें ओलियांकी भी तपश्च वगैरह करने में आती है और खास अधिकमास में भी पाक्षिकादि धर्मकार्य करने में आता है इस लिये मुहूर्त्तके निमित्तिक कार्य्यं अधिकमास में नही हो सकते है परन्तु धर्मकार्थ्य तो बिना मुहूर्तका होनेसे अवश्यही करनेमें आता है यह तात्पर्य शुद्ध समाचारी कारका सत्यथा तथापि न्यायाम्भोनिधिजीनें (पृष्ठ १५० पंक्ति ६ में नारचन्द्र ज्योतिष ग्रन्थका प्रमाण दिया है सो तो होरीके स्थान में वीरीका विवाह कर दिया है ) ऐसा उपहातका वाक्य लिखके उपरोक्त सत्यबातका निषेध करदिया और फिर उसी स्थानका 'हरिशयने, इत्यादि श्लोक लिखके हरिशयने श्रीकृष्णजीका शयन ( सोना ) जो चौमासामें और अधिक मास में शुभकार्य का न होना दिखाकर पर्यु For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy