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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १४९ ] राजोंकी आशातना करने वाला और उन्हीं महाराजोंका वाक्यको न मानता हुवा उत्थापन करने वाला प्राणीको यावत् दुलभ बोधि मिथ्यात्वी अनन्त संसारी कहा है तैसे ही न्यायांभोनिधिजी श्रीआत्मारामजीने भी अज्ञान तिमिरभास्कर ग्रन्थके पृष्ठ ३२०में लिखा है-छठ दशम द्वादसे हिं, मासटुमासखमणे हिं। अकरन्तो गुरुवयणं, अनन्त संसारिओ भणिओ ॥१॥ तथा और भी पृष्ठ २९५ का लेख इसी ही पुस्तकके पृष्ठ 6 और ८०, में छपगया है इससे भी पाठकवर्ग विचार करो कि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यों को और अपने ही गच्छके पूर्वाचार्योंकी इन तीनों महाशयोंने अधिकमासको निषेध करने के लिये कितनी बड़ी आशातना करके कितने शास्त्रोंके पाठोंको उत्थापन किये है तो फिर इन तीनों महाशयों में अनन्त संसारका हेतु रूप मिथ्यात्वके सिवाय सम्यक्त्वका लेश मात्र भी कैसे सम्भव होगा क्योंकि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्योंकी आशातना करने वाला तथा आज्ञा न मानने वाला और उलटा उन्ही महात्माओं के वचनोंका उत्थापन करने वालाको जैन शास्त्रोंके जानकार बुद्धिजन पुरुष सम्यक्त्वी नही समझ सकते हैं इसलिये अब पाठक वर्ग पक्षपातका दृष्टिरागको छोड़कर और श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञानुसार सत्य बातके ग्रहण करनेकी इच्छा रखकर उपरकी वार्ताको अच्छी तरहसें पढ़के सत्यासत्यका निर्णय करके असत्यको छोड़ो और मत्यको ग्रहण करो यही मोक्षाभिलाषि भवभिरु पुरुषों, मेरा कहना है और प्रथम श्रीधर्मागरजीने श्रीकल्पकिरणावलीवत्तिमें For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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