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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १२ ] भासको दिनो, यावत् मुहूतामें भी खुलासासे प्रमाण किया है इसलिये अधिकमासकी गिनती निषेध करने वाले तीनों महाशय और इन्होंके पक्षधारी वर्तमानिक महाशय भी श्रीअनन्ततीर्थङ्कर, गणधर, पूर्वधर पूर्वाचार्यो के और अपने ही पूर्वजों के वचनों का खण्डन करते, सूत्र, वृत्ति, भाष्य, चूर्णि, नियुक्ति, और प्रकरणादि अनेक शास्त्रोंके पाठोंके न मानने वाले तथा उत्थापक प्रत्यक्ष बनते है और भोले जीवोंको भी उसी रस्ते पहोचाते मिथ्यात्वकी वृद्धिकारक संसार बढ़ाते है । इस लिये गच्छके पक्षपातका कदाग्रहको छोड़के शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक अधिक माप्तको प्रमाण क नेकी सत्यबातको ग्रहण करना और सब जनसमाजको ग्रहण कराना यही सम्यक्त्व धारीसज्जन पुरुषों का काम हैं ;---- और भी तीनों महाशय चौमासी कृत्य आषाढ़ादिमास प्रतिबद्धा की तरह मास वृद्धि होने से पर्युषणा भी भाद्रपदभास प्रतिबद्धा ठहराते है को भी शास्त्रों के विरुद्ध है क्योंकि प्राचीन काल में भी मात वृद्धि होनेसे श्रावणमास प्रतिवद्धा पर्युषणाथी और वर्तमान कालमें भी दो श्रावण होनेसे कालानुसार दूजा श्रावण में पर्युषणा करने की शास्त्रकारों की आज्ञा हैं सोही श्रीखरतरगच्छादिमे करने में आती हैं इसलिये मास वृद्धि होते भी प्राचीन कालमें भाद्र. पद प्रतिवद्धा और वर्तमानमें दो श्रावण होते भी भाद्रपदप्रतिबद्धा पर्युषणा ठहराना शास्त्रोंके विरुद्ध है इस बातका उपर में विशेष खुलासा देखके सत्यासत्यका निर्णय पाठकवर्ग स्वयं कर सकते हैं। और जैसे चौमाती कृत्यमें अधिक मासको गिना जाता है तैसे ही पर्यषणा में भी अधिक मास को For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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