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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १२९ ] दिन वर्षाकालमें रहनेका सर्वथा प्रकारसे अवश्यही निश्चय करना मो ‘पज्जोसवणा' अर्थात् पर्युषणा है जिस्ट में भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीके पहिले ५० दिनके अन्दरमें योग्य क्षेत्रासादादि कारणे दूसरे स्थानमें भी विहार करके जाना बन सकता है परन्तु पचासमें दिन योग्य क्षेत्रके अभावले जङ्गलमें वृक्ष मीचे भी अवश्यही पर्युषणा करे यह मुख्य तात्पर्य है। ___और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिने पर्युषणा करनेसे पी. छाही ७० दिन रहते हैं तैसे ही मास वृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सरमें धीस दिने पर्युषणा करनेसे पीछाही १०० दिन रहते हैं सो उपरमें अनेक जगह खुलासा पूर्वक छप गया है तैसेही इन्हीं वृत्तिकार महाराज, श्रीस्थानांगजी सत्रकी वृत्तिमें कहा है जिसका यहाँ पाठ दिखाता हुं। छपी हुई श्रीस्थानांगजी सूत्र वृत्तिके पृष्ठ ३६५ का तथाच तत्पाठः___ पढमपाठसंसित्ति ॥ इहाषाढ श्रावणी प्रावट आषावस्तु प्रथम प्रावट ऋतुनां वा प्रथम इति प्रथमप्रावट अथवा चतुर्मासप्रमाणो वर्षाकालः प्रावृहिति विवक्षित सत्र सप्ततिदिनप्रमाणे प्रावषे द्वितीये भागे तावन्नकल्पत एव गन्तु म्प्रथम भागेऽपि पञ्चाशद्दिनप्रमाणे विंशति दिनप्रमाणे वा न कल्पते जीवव्याकुलभूतत्वा दुक्तंच एत्थय अणभिगहियं, वीसहराइसवीसईमासं ॥ तेणपरमभिग्गहियं, गिहिनायंकत्तियंजावत्ति ॥ १॥. अनभिगृहीत, ममिश्चित मशिवादिभि निर्गमभावात् आहच असिवादिकारणेहिं, अहवावासंनमुटु- आरद्धअभिवढियंमिवीसा, दहरेसु सवीसईमासो ॥१॥ यत्र संवत्सरेऽधिकमासको भवति तत्राषाढ्याः विंशतिदिनानि याव दनभिग्रहिक आवासो ऽन्यत्र For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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