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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir द्ध है. इसकाभी विशेष खुलासा देखो दोनों चूर्णिके विस्तार पूर्वक पाठो सहित इसीग्रंथके पृष्ठ ९१ से १०६ तक. ५-जैन टिप्पणामें अधिकमहीना होताथा तबभी २० वें दिनश्रावण शुदि पंचमीको पर्युषणा पर्वमें वार्षिक कार्य होतेथे, इसलिये २० वे दिनकी पर्युषणामे वार्षिक कार्य कभी नहीं हो सकते, ऐसा कहनाभी सर्वथा शास्त्र विरुद्ध है, इसकाभी विशेष खुलासा दे. खो इसीग्रंथके पृष्ठ १०७ से ११७ तक, ६- श्रावण भाद्रपद या आश्विन बढे तो भी ५० वै दिन पर्युषणापर्व करनेसे शेष कार्तिक मास तक १०० दिन होते हैं, जिसपरभी ७० दिन रहनेका आग्रह करते हैं, सो भी शास्त्र विरुद्ध है, ७० दिन रहनका तो मास वृद्धिके अभाव संबंधीहै,मगर मास वृद्धि होवे तबतो १०० दिन रहना शास्त्रानुसार हैं। इसकाभी विशेष खुलासा इस ग्रंथम पृष्ठ ११७ से १२८ तक, तथा १७४ से १८५ तक देखो.. ७- अधिकमहीना होवे उसवर्षके १३ महीने व एक चौमासेके ५ महीने होते हैं. उतनेही महीनोंके कर्मबंधनभी होते हैं, तोभी उसमे १२ महीनोके व ४ महीनोके क्षामणेकरने कहते है. सोभी शा. स्त्र विरुद्ध है. अधिक महीना होवे तब १३ महीनोंके व ५ महीनोंके क्षामणे करने शास्त्रानुसार हैं; इसकाभी विशेष खुलासा पृष्ठ १३३ से १३६ तक. और पृष्ठ ३६२ से ३७८ तक देखो. ८-अधिक महीनेमें सूर्यचार नहीं होता, ऐसा कहनाभी शास्त्रविरुद्धहै, छ छ महीने१८३ वे दिन, सूर्य दक्षिणायनसे उत्तरायनमें और उत्तरायनसे दक्षिणायनमें हमेशा होता रहता है, उसमें अधिक महीनेके ३० दिनोभी जैनशास्त्र मुजब या लौकिक टिप्पणामुजबभी सूर्यचार होताहै. इसकाभी विशेष खुलासा देखो इसी ग्रंथके पृ. ष्ठ १३७ से १३२. तक. ९- अधिक महीने के ३० दिनों में देवपूजा, मुनिदान, प्रतिक्रमण वगैरह धर्मकार्य करने, मगर उसके ३० दिनोंको गिनती नहीं लेने का कहना,सोभीप्रत्यक्ष शास्त्र विरुद्धहै. जितने रोज देवपूजादि धर्मकार्य किये जायेंगे, उतने दिन अवश्यही गिनती में लिये जावेगें, और जैसे मुनिदानादि कार्य दिन प्रतिबद्ध हैं, वैसेही पर्युषणपर्वभी५०दिन प्रतिबद्ध हैं. इसकाभी विशेष खुलासा पृष्ठ १४२ से १४३ तक देखो १० अधिक महिनेमें विवाह आदि शुभकार्य नहीं होते, उसमु. For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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