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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १७ ] प्राचीनकालमें जैन ज्योतिषके पञ्चाङ्गकी रीतिसे चंद्र में पचासदिने भाद्रपद शुक्रपञ्चमीको और अभिवर्द्धितमें वीशदिने श्रावणशुक्लपञ्चमीको प्रसिद्ध निश्चय पर्युषणा वार्षिक कृत्यों से करनेमें आती थी जब जैन पञ्चाङ्गमें सिर्फ पौष तथा आषाढ़ मासको वृद्धि होती थी और मासोंकी वृद्धिका अभाव था जिपसे वर्षाकालके चारमासमें श्रावणादि कोई भी मास की वृद्धि नही होती थी परन्तु अब वर्तमानकाल में जैनज्योतिषके पञ्चाङ्गका अभाव होनेसे लौकिक पञ्चाङ्ग में हरेक मामोंकी वृद्धि होती है जिससे वर्षाकालमें श्रावण भाद्रपदादि मास भी बढ़ने लगे और अभिवर्द्धित संवत्सरमें योग्यक्षेत्राभावादिकारणे पाँच पाँच दिनको वृद्धि करते यावत् चारपञ्चके वीशदिने पर्युषणा करनेका तथा चंद्रसंवत्सरमें भी योग्यक्षेत्राभावादि कारणे पाँच पाँच दिनकी वृद्धि करते यावत् दशपञ्चके पर्युषणा करनेका कल्प कालानुसार श्रीसङ्घकी आज्ञासै विच्छेद हुआ है इसका विशेष विस्तार आगे करने में आवेगा] ___ इसलिये वर्तमानकालमें मासवृद्धि होवे तो भी आषाढ़ चौमासीसे पचास दिनकी गिनतीसे पर्युषणा करनेकी श्रीखर तरगच्छके तथा श्रीतपगच्छादिके पूर्वज पूर्वाचार्योंकी आज्ञा है जिससे दो श्रावण हो तो दूजा श्रावणमें तथा दो भाद्रपद हो तो प्रथम भाद्रपदमें प्रसिद्ध पर्युषणा श्रीजिनेश्वर भगवान्की तथा श्रीपूर्वाचार्योंकी आज्ञाके आराधन करनेवाले मोक्षार्थी प्राणी अवश्य करते हैं इसलिये दो श्रावण तथा दो भाद्रपद अथवा दो आश्विनमास होनेसे पांचमासके १५० दिनका अभिवर्द्धित चौमासा होता है जिसमें पचासदिने For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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