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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ११६ ] सहित होती थी सो निश्चय निःसन्देहकी बात है और पर्युषणा अज्ञात तथा ज्ञात दो प्रकारकी सबी शास्त्र कारोंने कही है इसलिये इन तीनों महाशयोंने ज्ञात पर्युषणाका भी दो भेद लिखके वीशदिनकी कहने मात्र ठहराई तथा पचासदिनकी वार्षिक कृत्योंसे ठहराई सो सर्वथा शास्त्र विरुद्ध हैं क्योंकि जैसी ज्ञात पर्युषणा चंद्रसंवत्सरमें पचास दिने होती थी तैसीही अभिवर्द्धित संवत्सरमे वीशदिने होती थी सो ज्ञात पर्युषणाका एकही भेद सर्व शास्त्रकारोंने लिखा है परन्तु ज्ञात पर्युषणाका दो भेद कोई भी प्राचीन शास्त्रोंमें नहीं है इसलिये तीनों महाशयोंका ज्ञात पर्युषणा दो प्रकारकी लिखना प्रत्यक्ष शास्त्र विरुद्ध हैं.--- और आषाढ़पूर्णिमाको योग्यक्षेत्राभावादि कारणे प्रावण कृष्ण पञ्चमी, दशमी वगैरह पाँच पाँचदिने जो पर्युषणा कही है सो गृहस्थी लोगोंकी न जानी हुई और अनिश्चय होती हैं इसलिये अज्ञात और अनिश्चय पर्युषणामें वार्षिक कृत्य नही बनते हैं किन्तु वीशे तथा पचासे ज्ञात और निश्चय पर्युषणामें वार्षिक कृत्य बनते हैं। और श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रके अष्टमाध्ययन (पर्युषणाकल्प) की चूर्णिका और श्रीनिशीथसूत्रके दशवें उद्देशेको चूर्णिका पाठमें श्रीकालकाचार्यजीने कारणयोगे चतुर्थीकी पर्युषणा किवी है सो भी चंद्रसंवत्सरमें किवी थी नतु अभिवर्द्धितमें क्योंकि खास चूर्णिकार महाराजने अभिवर्द्धितमें वीशे तथा चंद्रमें पचासे ज्ञात निश्चय पर्युषणा करनी कही है जिसका सब पाठ उपरोक्त छपगया हैं इसलिये मासद्धि होते भी भाद्रपदमें पर्युषणा स्थापते हैं सो मिथ्यावादी है क्योंकि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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