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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १९० ] जाती हैं ऐसी गृहस्थी लोगोंके जानी हुई पर्युषणा यावत् कार्तिक पूर्णिमा तक याने जो अभिवर्द्धितमें वीशदिने श्रावण शुक्ल पञ्च नोको जानो हुई पर्युषणा करे सो कार्तिक पूर्णिमा तक १०० दिन उसी क्षेत्र में ठहरे और चन्द्रमें पचास दिने भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीको जानी हुई पर्युषणा करे सो कार्तिक पूर्णिमा तक 90 दिन उसी क्षेत्रमें ठहरे। ___उपरोक्त श्रोतपगच्छके श्रीक्षेमकोर्तिसूरिजी कृत पाठके भावार्थः मुजबही अनेक जैन शास्त्रोंमें खुलासा पूर्वक व्याख्या हैं सो उपरमें श्रीनिशीथचूर्णि श्रीदशाश्रुतस्कन्धचूर्णि श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्यों वगैरहके पाठ भी छपगये हैं और कितनेही शास्त्रों के पाठ इस ग्रन्थमें विस्तारके भयसे नही छपाये हैं सो अबी मेरे पास मोजूद है जिसमें भी उपर मुजबही चतुर्मासीमें पर्युषणा संबन्धी अज्ञात और ज्ञातको खुलासा पूर्वक व्याख्या हैं। उपरके पाठमें श्रावण तथा भाद्रव माखका नाम नही हैं परन्तु वीश तथा पचास दिनका नाम लिखा है जिससे वीश दिनकी गिनती आषाढ़पूर्णिमासे श्रावण शुक्ल पञ्चमीको और पचास दिनकी गिनती भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीको पूरी होती हैं इस लिये भावार्थमें श्रावण तथा भाद्रपदका नाम तिथि सहित लिखा जाता है उपरोक्त पाठमें आषाढ़ चौमासीसे कार्तिक चौमासी तककी व्याख्या दिनांकी गिनती सहित खुलासा पूर्वक पर्युषणा सम्बन्धी करी है परन्तु आषाढ़ चौमासीसे इतने दिन गये बाद पर्युषणामें वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि अमुक दिने करे ऐसा नही लिखा हैं परन्तु For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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