SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [४] विच्छेद हुआ, तबसे लौकिक टीप्पणा मुजब मास-पक्ष-तिथी-चार नक्षत्र-मुहूर्त्तादि व्यवहार जैन समाजमें शुरू हुआ. उसमें श्रावण भाद्रपदादि मासभी बढ़ने लगे.तब जैनसंघने श्रीवीर निर्वाणसे९९३ वर्षे अधिक महीने वाला वर्ष २०दिने पर्युषणापर्व करने की मर्यादा बंध करी और अधिक महीना हो,चाहे न हो, तो भी ५०वें दिन प. र्युषणापर्वमें वार्षिक कार्य करनेका नियम रख्खाहै. सो “जैनटिप्प. नकानुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगांते चाऽऽषाढ एव वर्धते नान्ये मासास्तट्टिप्पणकं तु अधुना सम्यग् न ज्ञायते ततः पंचाशतव दिनैः पर्युषणा युक्तेति वृद्धाः यह पाठ कल्पसूत्रकी सुबोधिकादिसर्व टीकाओमें प्रसिद्धही है। उसके अनुसार श्रावणबढेतो दूसरेश्रावणमें और भाद्रपदबढेतो प्रथम भाद्रपदमें ५०दिने पर्युषणापर्वका आराधन करना जिनाज्ञा है। और पहिले मास वृद्धिके अभावसे५०वें दिन प. र्युषणा करतेथे, तब पर्युषणाकेबाद कार्तिक तक ७० दिन ठहरतेथे,मगर जब मास वृद्धि होनेपर २० दिने पर्युषणा करतेथे,तब तो पर्युषणाके पिछाडी कार्तिक तक १०० दिन ठहरतेथे,यहबात निशीथमा. ध्य-चूर्णि-पर्युषणाकल्पचूर्णि,बृहत्कल्पचूर्णि,वृत्ति जीवानुशासनवृत्ति गच्छाचारपयन्नवृत्ति,स्थानांगसूत्रवृत्ति, वगैरह अनेक शास्त्र पाठोंसे सिद्ध होतीहै । और वर्तमानमें श्रावण, भाद्रपद तथा आश्विन बढ़नेपरभी५०दिने पर्युषणापर्व करनेसे पिछाडी कार्तिक तक १०० दिन ठहरते हैं । यह भी कल्पसूत्रकी सर्व टीकाओंके अनुसार होनेसे जि. नाशानुसारही है, इसलिये इसमें किसी प्रकारका दोष नहीं है। इस ऊपरके शास्त्रीय लेखपर दीर्घ दृष्टिसे निष्पक्ष होकर मध्यस्थ बुद्धिसे विचार किया जावे तो स्पष्ट मालूम हो जावेगा,कि-पर्युषणा पर्व करनेमे जैन टिप्पणानुसार या लौकिक टिप्पणानुसार आधिक मास अथवा कोईभी मास, या कोईभी दिन कभी बाधक नहीं होसकताहै. क्योंकि पर्युषणापर्वकरनेमे५०दिनोंकी गिनतीकाव्यवहारिक शास्त्रीय नियम होनेसे पर्युषणा पर्व दिन प्रतिबद्ध ठहरते हैं. किंतु मास प्रतिबद्ध कभी नहीं ठहरसकते । और ५० दिनोंकी गिनतीमें अधिक महीनेके३० दिवस तो क्या मगर एक दिवस मात्रभी गिनती कभी नहीं छुट सकता । जिसपरभी पर्युषणा पर्व-दो श्रावण होनेपरभी भाद्रपद मास प्रतिबद्ध ठहराना १. अधिक महीनेके ३० दिनोंकों बीचमेसे छोड देना २. वीश दिनोसे पर्युषणा पर्व करने की बातको सर्वथा उडा देना ३. श्रावण भाद्रपद या आश्विन बढनेसे १०० For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy