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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ह] तंवा कहेंति ॥ आरतो न कहेंति उच्यते ॥ असिवादि गाहा कयाइ ॥ असिवं भवे आदिगाहणतो रायदुठाइ वा वासं या मुट्ठ आर वासितुं, एवमादिहिं कारणेहिं, जइ अच्छंति तो आणा तीता दोसा, अहगच्छंति ततो गिहत्या भणति एते, सपुत्तगा ण किचिजारांति, मुसावाय भासंति, ठितामोत्ति भणित्ता जेण णिग्गता लोगो वा भणिज्न साहूएत्य वरिसारतं ठिता, अवस्स' वास भविस्सति, ततो ध विक्कणति, लोगो घरादीनिच्छादेति, अह हलादिकं माणिवाम ठवेति, अणिगाहिते गिहिणा तेय आरतो कतो, जम्हा एवमादिया अधिकरणदोसा, तम्हा अभिवदियवरिसे, वीसतीराते गते गिहिणा त करेंति, तिसु चंदवरिसे सवीसति राते मासे गते गिहिणा तं करेंति, जत्य अधिमासगो पडति वरिसे, तं अभिवद्दियवरिसं भस्मति, जत्य णु पडति, तं चंदवरित सोय अधिमासगो जुंगस्सगंते मज्जे वा भवन्ति, जइ तो नियमा दो आसाढा भवंति, अहमज्जे दो पोसा, सीसो, पुच्छति जम्हा अभिवद्वियवारिसे वीसतिरात, चन्दवरिसे सवीसतिमासो ॥ उच्यते ॥ जम्हा अभिवयरिसे, गिम्हे चेव सो मासो अतिक्क तो, तम्हा वीस दिना अणमिगाहियं तंकरेंति, इयरेषु तिसु चंदवरिसेषु सवीसतिमाता इत्यर्थः ॥ एत्य पणगं गाहा ॥ एत्थत आसाढ पुसि माए, ठिया डगलादीय गिरहंति, पजजोसवणाकप्पंच कहेंति, पंचदिणा ततो सावण बहुल पञ्चमीए, पज्जोसवेंति, खेत्ता भावे कारणेन पणगेसु बुढ्ढे दसमीए, पज्जोसवेंति, एवं पण सीए, एवं पणग्गवढ्ढी, ताबकज्जति, जाव सवीसति मासो, पुणो सोय सवीमति मासो भट्टवयसुद्ध पचनी पयुज्जति, For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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