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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ५५ ] गिनती में नही छुटसकता हैं और तीसरी ऊङ्घ (उंचा) लोकमें सर्वार्थ सिद्धि विमानसें बारह योजन पर ईषत्प्राग्भारा नाम पृथ्वी जो सिद्धसिला ४५००००० लक्ष योजन प्रमाणे लंबी और चौड़ी हैं तथा बीचमें आठ योजन की जाड़ी हैं जिसके उपर श्री अनन्त सि भगवान् विराजमान हैं एसी जो सिङ्घ सिला सो ऊङ्ख लोकके शिखररूप होनेसें चलायें गिनी जाती हैं यह क्षेत्रचूला भी प्रमाण करके गिनती में करने योग्य हैं । और कालचूला उसीको कहते हैं कि जो बारह चन्द्र मासोंसें चन्द्रसंवत्सर एकवर्ष होता हैं जिसका उचितकाल हैं उसमें भी एक अधिक मासकी वृद्धि हो कर बारह मासों के उपर पड़ता हैं सो लोकोंमें प्रसिद्ध भी हैं और अनादि कालसे अधिकमासका एसाही स्वभाव है सो प्रमाण करने योग्य हैं और अधिकमास ज्यादा पड़ने से संवत्सरका नाम भी अभिवर्द्धित होजाता हैं बारहमासोंका कालके शिखररूप अधिकमास ज्यादा होनेसें उसको कालचूला कही जाती है तथा जैन ज्योतिषके शास्त्रोंसे साठ (६०) वर्षों की अपेक्षा एक वर्ष की भी वृद्धि होती थी जिसकों भी कालचूला कहते हैं और उत्सर्पिणिके अन्त में भी जो काल व सोभी कालचूला में गिना जाता हैं तथा कालचूलारूप जा अधिकमास है उसीको प्रमाण करके गिनती में मंजूर करना चाहिये क्योंकि अधिकमासको कालचलाकी जो ओपमा है सो निषेधकवाची नहीं है किन्तु विशेष शोभाकारी उत्तम होनेसे अवश्य ही गिनती करनेके योग्य है । तथापि वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले जो महाशय अधिकमास को For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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