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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ५४ ] चूला कही जाती हैं इन्होंकों चूलाकी ओपमा देनेका यही कारण है कि सब भवअवयोंसे विशेष सोभाकारी सुन्दर उत्तम होनेसे शिखरकी अर्थात् चलाकी ओपमा शास्त्रकारोंने दिवी हैं, द्रव्यचलारूप भव्यशरीरकों गिनती में करके प्रमाण करने योग्य हैं, द्रव्य निक्षेपावत् अर्थात् रावण कृष्ण श्रेणिकादि अबी द्रव्य निक्षेपेमें गिने जाते हैं परन्तु जब केवल ज्ञान पावेंगे तब भाव निक्षेपेमें गिने जावेंगे तैसेही भव्यशरीर जो द्रव्यधूलामें हैं सो जब साधु आदि धर्मकी प्राप्ति होगा तब भावलामें गिना जावेगा। द्रव्यचूला की गिनती नही करोगे तो आगे भाव वलामें कैसे गिना जावेगा इस लिये द्रव्य चूलाकी गिनती प्रमाण करने योग्य हैं। ___और क्षेत्रचला भी तीनप्रकार की कही हैं जिसमें प्रथम अधोलोकमें रत्नप्रभा पृथ्वीके सीमन्तनामा नरकावासा अधो. लोकके उपर जो शिखररूप है उसीकों अधोलोक चला कही जाती हैं तथा दूसरी तिर्यग (तीरछा) लोकमें सुप्रसिद्ध जो मेरुपर्वत हैं उसीको तिर्यग लोकचूला कहते हैं कारण कि तिर्यग लोकका प्रमाण उंवा १८०० सो योजनका हैं परन्तु मेरुपर्वत तो एक लक्ष योजनका होनेसे तिर्यगलोककों भी अतिक्रान्त ( उल्लङ्घन ) करके उंचा चला गया इस लिये तिर्यगलोकके उपर शिखररूप होनेसें मेरुपर्वतकों चलामें गिना जाता हैं तथा मेरुके उपर जो ४० योजनकी चलीका हैं सो भी मेरुके शिखररूप होनेसें चलामें गिनी जाती हैं और मेरुके चार वनोंमें १६ तथा १ चलीकाका मिलके १७ मन्दिरोंमें २०४० श्रीजिनेश्वर भगवान की शाश्वती प्रतिमाजी हैं इसलिये क्षेत्रचूलाका प्रनाण एक अंशमात्र भी For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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