SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ५२ ] और भी श्रीजिनभद्र गणिक्षमाश्रमणजी महाराज युगप्रधान महाप्रभाविक प्रसिद्ध है जिन्होंके शिष्य श्रीशीलाङ्गाचार्य्यजी भी महाविद्वान् श्रीआचाराङ्गादि ११ अङ्गरूप सूत्रोंकी टीका करनेवाले प्रसिद्ध है जिसमें श्रीआचाराङ्गजी तथा श्रीसूयगडाङ्गजी सूत्रको टीका तो सुप्रसिद्धिसे वर्त रही हैं और बाकी श्रीस्थानाङ्गजी आदि नवसूत्रों की टीका विच्छेद होगई थी जिससे श्रीअभयदेवसूरिजीनें दूसरी वार बनाई है सो प्रसिद्ध है श्रीशीलाङ्गाचार्य्यजी विक्रम संवत् ६५० के लगभग हुवे हैं सो श्रीआचाराङ्गजी सूत्रकी व्याख्या रूप टीका करते दूसरे श्रुतस्कन्धकी व्याख्याके आदिमें ही चूलाका विस्तार किया है परन्तु यहाँ थोड़ासा लिखता श्रीमदाबाद निवासी धनपतिसिंह बहादुरकी तरफ से श्रीआवाराङ्गजी मूलसूत्र, भाषार्थ, दीपिका और वृहत् वृत्ति सहित छपके प्रसिद्ध हुवा है जिसके दूसरा श्रुतस्कन्धके पृष्ठ ४में से चला विषयका थोड़ासा पाठ नीचे मुजब जानो यथा चड़ाया निक्षेपः नामादिः षड् विधः नामस्थापने क्ष द्रव्यचा व्यतिरिक्ता सचित्ता कुक्कुटस्य अचित्ता मुकुटस्य चड़ा मिश्रा मयूरस्य, क्ष ेत्रच हा लोकनिःकुटरूपा कालचूड़ा अधिकनातक स्वभावा भाववड़ात्वियमेव क्षयोपशमिकभाववर्तित्वात् तथा ( इसके पहले तीसरे पृष्ठ में) कालाग्रमधिकमासकः यदिवाय शब्दः परिमाणवाचक इत्यादिदेखो ऊपरोक्त शास्त्रों के कर्ता में श्रीजिनदासमहत्तराचार्य्यजी पूर्वधरगीतार्थ पुरुष प्रसिद्ध है तथा श्रीहरिभद्र सूरिजी भी पूर्वधर गत गीतार्थ पुरुष प्रसिद्ध हैं और श्रीजिनभद्रमणि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy