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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( १७ ) पर्युषणा होती थी परन्तु जैन पंचांगके अभाव से वर्तमानarer लौकिक पंचाङ्गानुसार अधिक नाम होने से उसीकी जितनी पूर्वक ५० दिने दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्र में पर्युषणा करने की पूर्वाचार्यों की मर्यादा है ऐसा उपरोक्त पाठासे खुलासा दिखता है तथापि उपरोक्त पाठार्थीका भावार्थ बदला करके मासवृद्धि के अभाव से ५० दिने भाद्रपदमें पर्युषणा कही है उमीकोही वर्तमानमें मानवृद्धि दो श्रावण होते भी ८० दिने जिनाशा विरुद्धका भय न करते हुए भाद्रपद में ठहरानेका वृधा आग्रह करते हैं सो क्या लाभ प्राप्त करेंगे । तथा उपरोक्त व्याख्याओंमें " अभिवर्द्धित वर्षे" इस शब्दते श्रीखरतरगच्छ के श्रीसमय सुंदरजी तथा श्रीतपगच्छके श्रीकुलमंडनसूरिजी श्रीधर्मसागरजी श्रीजय विजयजी श्रीविनयविजयजी इन सबी महाशयोंके लिखे वाक्यसे अधिक मासकी गिनती प्रत्यक्षपने सिद्ध है इसलिये अधिकमास की गिनती निषेध भी नहीं हो सकती है तथापि कोई निषेध करेगा तो उत्सूत्र भाषणरूप होनेसे श्री अनंत तीर्थंकर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचा यकी और अपनेही गच्छ के पूर्वजोंकी आज्ञा उल्लंघनका दूषण लगेगा क्योंकि श्री अनंत तीर्थंकर गणधर पूर्वधरादि पूर्वा चाने तथा श्रीखरतरगच्छके और श्रीतपगच्छादिके पूर्वजोंने अधिकमास के दिनोंकी गिनती पूर्वक तेरह मासोंका अभिवर्द्धितसंवत्सर कहा है इसका विस्तार आगे शास्त्रोंके पाठार्थी सहित तथा युक्ति पूर्वक लिखने में आवेगा और भी प्रोपागच्छ के श्रीब्रह्मर्षिजी कृत श्रीदशाश्रत स्कन्ध सूत्रकी वृत्तिके पृष्ठ ११२ मे १९५ तकका पर्युषणा सम्बन्धी पाठ यहां दिलाता हूं तथाच तत्पाठ : For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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