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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भाषणमें पर्युषणा करनेवालोंको वृथा द्वेषबुद्धिसे आनाभङ्गका दूषण लगाना और दो श्रावण होते भी आषाढ़ चौमासीसे दो मास उपर बीस दिन याने ८० दिने ( प्रत्यक्ष पंचाङ्गी विरुद्ध अपनी मति कल्पनासे) पर्यषणा करके भी माताके आराधक बनना से गच्छदाग्रहि उत्सूत्र भाषण करनेवालोंके सिवाय और कौन होगा सो विवेकी सज्ज. नोंको विचार करना चाहिये । और दो श्रावण होतभी भाद्रपदमें तथा दो भाद्रपद होनेसे भी दूसरे भाद्रपदमें ८० दिने पर्युषणा करनेवाले महाशयों को हर वर्ष पर्युषणा में प्राय करके सब जगह पर बंचाता हुआ मूलमन्त्ररूप उपरोक सत्रपाठको विवेक बुद्धिसे विचार के असत्यको छोड़ कर सत्य को ग्रहण करना चाहिये। और अब ऊपरके सब पाठकी मब व्याख्याओंके सबपाठ बहोत विस्तार हो जाने के कारणसे नहीं लिखता हूं परंतु ( अन्तरा विषसे कप्पइ नासे कप्पड तं रयणि उवायणा वित्तए ) इस अन्तके पाठकी थोड़ी मी व्याख्याओंके पाठ लिखके पाठक वर्गको विशेष निःसन्देह होने के लिये लिख दिखलाता हूं। २ श्रीखरतरगच्छके श्रोममयसुन्दरजी कृत श्रीकल्पकल्पउता कृत्तिके पृष्ठ १११ से ११२ तकका तत्पाठ:--- अन्तरावियसै कप्पा पज्जो वित्त ए । अन्तरापि च अर्वागपि कल्पते पर्युषित, "नोसैकप्पइ तं रयणि" परं न कल्पते तां रजनीभाद्रपद शुक्ल पञ्चमी, “उवाइणावित्तएत्ति," अतिक्रमितं । उपनिवासे इत्यागमिकोधातुः, इह पर्युषणाद्विधागृहिज्ञाता गृह्यज्ञाताच, तत्र गृहिणामज्ञातायां वर्षा योग्य For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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