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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्तुजाति ९४४ वस्नसा सामान्य विशेषात्मक वस्तु। पुरा' (सुद० ४/३६) ०धन सम्पत्ति-'वस्तुमेणाक्षीणां मनस्युदारे (सुद० ८८) ०अनेक, वस्त्र। जलेन क्षालनादिक्षालितमंशुकं वस्त्रमनक मूलस्थिति, द्रव्य की स्थिति। (सम्य०७४) मलवर्जित परिपठ्यते। (जयो०वृ० २।८०) 'मामकीन वस्त्रं योजता, रूपरेखा। मह्यं न ददासि तर्हि कस्यै दास्यसि?' (जयो० १७/१३१) ०अवस्था। (सुद० ३/३२) वस्त्रकुट्टिम (नपुं०) तम्बू, डेरा। ०माल, चीज। (जयो० २/११३) वस्त्रगृहं (नपुं०) तम्बू, डेरा, दूष्यक। (जयो०वृ० १३/७१) वस्तुजाति (स्त्री०) पदार्थ की उत्पत्ति, द्रव्य उत्पत्ति। वस्त्रग्रन्थिः (स्त्री०) धोती या साड़ी की गांठ। नीवि, नाड़ा। ___ 'त्रयात्मिकाऽतः खलु वस्तुजातिः' (वीरो० १९/३) वस्वनिर्णेजकः (पुं०) धोबी, वस्त्रपरिक्षालक। वस्तुतः (अव्य०) स्वभावतः, यथार्थतः, तत्त्वतः, वाकई। 'वस्तुस्तु वस्त्रपगृहं (नपुं०) पटविरचित स्थान, पाण्डाल तम्ब। मदमात्सर्याद्याः' (सुद० ११०) (जयो० ६/१३२) वस्तुतं (अव्य०) वास्तव में, अनिवार्यता, यथार्थ में, वाकई, वस्त्रपरिक्षालकः (पुं०) धोबी। मूलतः। वस्त्रपरिधानं (नपुं०) कपड़े पहनना, वस्त्रधारण करना। वस्तुतत्त्वं (नपु०) पदार्थ तत्त्व, द्रव्य का रूप। वस्त्रपूतः (पुं०) वस्त्र से छना। (हित०४८, सुद० १/४३) 'अनेकशक्त्यात्मकवस्तुतत्त्वम्' (वीरो० १९/८) जलाशयस्य के वस्त्रपूतं कृत्वाऽथ बह्निना। वस्तुत्व (वि०) वस्तु का गुण-वस्तु में जो सामान्य और सन्तप्य तदुपादानं प्रशस्तमभिधीयते।। (हित० १/८) विशेषरूपता होती है यही वस्तु का वस्तुत्व है। वस्त्रपुत्तिका (स्त्री०) पुतली, कपड़े की गुड़िया। सामान्य-विशेषात्मकत्वं वस्तुत्वलक्षणम्। (अष्टशती० १९) वस्त्रभेदकः (पुं०) दर्जी, नामदेव। वस्तुत्वधर्मः (पुं०) जो सर्वथा साथ रहता है, स्वभावगतधर्म। वस्त्रभेदिन् (पुं०) दर्जी, नामदेव। (वीरो० १९/४०) समस्ति वस्तुत्वमकाट्यमेतन्नोचेत् वस्त्रयुग्मं (नपुं०) युगल वस्त्र। (सुद० ४/३१) किमाश्वासनमेतु चेतः। (वीरो० १९/४०) वस्त्रयोनिः (स्त्री०) कपड़े की उत्पत्ति, कपास। वस्तुपरिच्छदं (नपुं०) पदार्थ संचरण, वस्तु परिभ्रमण। 'बाह्य वस्त्ररंजनं (नपुं०) कुसुंभ। वस्तुपरिच्छदं न तु कनागप्यत्र तद्वानसि' (मुनि० २५) । वस्त्रव्यपेतः (पुं०) निर्ग्रन्थ, वस्त्रत्यागी, दिगम्बर। वस्तुसंविदः (पुं०) तत्त्वविचारकवृत्ति। (जयो० २८/४४) शिशूपमा ये खलु निर्विकाराः, वस्तुसत्त्वं (नपुं०) वस्तु का यथार्थ रूप, उत्पाद, व्यय और विश्वप्रमोदाय कृतप्रचाराः। ध्रुव इन तीन रूप वस्तु की यथार्थ रूपता है। वस्त्रव्यपेतोत्तमसम्प्रदाया स्ते सन्तु, स्यूतिः पराभूतिरिव ध्रुवत्वं नित्यं गुरवः सहायाः।। (भक्ति० १६) पर्यायतस्तस्य यदेकतत्त्वम्। वस्त्रसंक्षालकः (पुं०) रजक, धोबी। (जयो०१० २८) नोत्पद्यते नश्यति नापि वस्त्राभरणं (नपुं०) वस्त्राभूषण। वस्तुसत्त्वं सदैत द्विदधत्समस्तु।। (वीरो० १९/१६) वस्त्राभ्यन्तरं (नपुं०) चीवरान्तर। (जयो० १३/२७) वस्तुस्वभावः (पुं०) पदार्थ का स्वभाव। वस्नं (नपुं०) [वस्+न] भाड़ा, किराया, मजदूरी। रेखैकिका नैव लघुर्नगुर्वी, ०आवास, घर, निवासस्थल। लव्याः परस्या भवति स्विदुर्वी। ०धन, वैभव, सम्पत्ति, द्रव्य। गुर्वी समीक्ष्याथ लघुस्तृतीयां, वस्त्र, आभरण। वस्तुस्वभावः सुतरामितीयान्। (वीरो० १९/५) ०मूल्य। वस्तुस्थितिः (स्त्री०) पदार्थ की स्थिति। (मुनि० १३) मृत्यु। वस्त्यं (नपुं०) [वस्ति+यत्] आवास, निवास, घर, स्थान। | वस्ननं (नपुं०) करधनी, कंदौरा, तगड़ी, पटका। वस्त्रं (नपुं०) [वस्+ष्ट्रन्] परिधान, पहनावा, वेषभूषा, पोशाक। वस्नसा (स्त्री०) [वस्नपं चर्म सीव्यति-सिव+ड+टाप] कण्डरा, (सुद० ७/९४) वारा वस्त्राणि लोकानां क्षालयामास या स्नायु। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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