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वर्षवृद्धिः
९३९
वलित
वलग्नः (पुं०) [अवलग्न इत्यत्र भागुरिमतेर अकरलोपः]
कमर। वलग्नं (नपुं०) कमर, कटि। वलनं (नपुं०) [वल् भावे ल्युट्] ०घूमना, चक्कर काटना,
मुड़ना।
९२ पास
वर्षवृद्धिः (स्त्री०) जन्मदिन। वर्षशतं (नपुं०) सौ वर्ष। वर्षसहस्रं (नपुं०) एक हजार वर्ष। वर्षा (स्त्री०) [वृष्+अच्+टाप्] वर्षाकाल। (वीरो० ६/२)
०वर्षाऋतु-पत्रशाकं च वर्षासु नाऽऽहर्तव्यं हयावता। (सुद० १२९)
मेघवृष्टि, वर्षा, बरसात, वर्षा होना। (सुद० २/५०)। 'वर्षायां तु न निर्ब्रजेत् पथि पुनर्वर्षयत्सुमेधेषु च। (मुनि०९) वर्षाऋतु (स्त्री०) वर्षा का समय, पयोदकाल (भक्ति १४)
बरसात का समय। (भक्ति० १४) वर्षाकालः (पुं०) पयोदकाल, वर्षा का समय। (वीरो०६/२)
(वीरो० २/१५) वर्षाक्लेशः (पुं०) वर्षाभाग का कष्ट। (जयो० ७० २२/१२) वर्षान्तर (पुं०) क्षेत्र के बीज, स्थान के मध्य। (भक्ति० ३४) वर्षान्तर पर्वतः (पुं०) क्षेत्रों के मध्य आए हुए कुलाचल।
(भक्ति० ३४) वर्षोषु वर्षान्तर, नन्दीश्वरे यानि च मन्दरेषु।
(भक्ति०३४) वर्षाभू (पुं०) मेंढक। वर्षाम्बु (नपुं०) चातुर्मास, वर्षाकाल का संयोग। (सम्य०
१५६) * श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक। "पञ्चम्या नभसः प्रकृत्यभवतादूर्जस्विनी या क्षमा, तावद्ध सशतावधौ निवसतादेकत्र लब्ध्वा समां। एतस्मिन्भवति स्वतोऽवनिरियं प्राणिव्रजैराकुला, संजायेत ततोऽर्हतां सुमनो
सावुज्जजृम्भे तुला। (मुनि० ७) वर्षार्चिस् (पुं०) मंग्रलग्रह। वर्षावसरसमयः (पुं०) शरद काल। (जयो० ४/९) वर्षावसारः (पुं०) बौछार, दृष्टि। कलि लिफल। (वीरो०
४/६) वर्षिका (स्त्री०) वर्षाकत्री। (जयो० १५/२४) वर्षितं (नपुं०) [वृष्+क्त] वर्षा, वृष्टि। वर्षिष्ठ (वि०) [अतिशयेन वृद्ध] अत्यन्त वृद्ध, बहुत बूढ़ा। वर्षीयस् (वि०) अधिक बड़ा। वर्षक (वि०) [वृष्+उकञ्] जलमय, बरसने वाला, देह। वर्मन् (नपुं०) शरीर, देह। वर्हः (पुं०) मयूर। (समु० ७/२५) वल् (सक०) जाना, पहुंचना, ठकना, घेरना। वल् (अक०) मुंडना, आकृष्ट होना, अनुरक्त होना।
०गोलाकार, मण्डलाकार, वर्तुलाकार। वलभी (स्त्री०) छज्जा। (जयो० १०/६१) वलभी (स्त्री०) एक नगरी, स्थान विशेष। श्वेताम्बर जैनागमों
की एक वाचना वलभी वाचना के रूप में प्रसिद्ध है। यह वाचना महावीर निर्वाण के ९८० में देवर्धिगणी की अध्यक्षता
में हुई थी। वलभीतलं (नपुं०) छज्जा। (जयो० १०/६१) वलयः (पुं०) [वल्+अयन्] कंगन, कड़ा, हाथ के आभूषण।
गोलाकार कंकण। श्री वीरमातुर्वलयानि तानि माणिक्यमुक्तादिविनिर्मितानि। (वीरो० ५/१५) ०छल्ला, कुंडल।
वृत्त, परिधि, मण्डल। (जयो० ५/८६, ९/६९) ०बाड़, घेरा, झाड़बन्दी।
गलगण्ड रोग। वलयस्वनं (नपुं०) कंकणशब्द, कंगनध्वनि। (जयो० १४/२५) वलयाकारः (पुं०) वर्तुलाकार। वलयावारकंकणं (नपुं०) गोल कंगन। वलयाकारकुंडल (नपुं०) गोलाकार कुण्डल। वल्याकारगिरि (पुं०) मण्डलकार पर्वत। वल्याकारपृथिवी (स्त्री०) गोल भूभाग। वलयाकुल (वि०) कङ्कणसहित व्याकुल। (जयो० १७/८५) वलयाङ्कित (वि०) कंगनाङ्गित (जयो० १८/१००) वलयेन
कटकेन अङ्कितः (जयो०वृ० १८/१००) वलयित (वि०) [वलय+इतच्] घिरा हुआ, परिवृत्त, चारों
ओर लपेटा गया। वलारि (स्त्री०) इन्द्रपुरी। (जयो०व० २४/२९) वलायमरणं (नपुं०) संयमहीन मरण। वलाहकः (पुं०) मेघा, बादल। (जयो० ५३) वलिः (स्त्री०) [वल+इन्] शिकन, झरी, सिकुड़न। वलिकः (पुं०) छत का किनारा। वलित (भू०क०कृ०) [वल्+क्त] तिरछी, टेढ़ी, तिर्यक्। (जयो०
१३/२६)
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