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लोहितः
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वंशनाडिका
लोहितः (पुं०) एक वृक्ष विशेष।
लाल रंग, मंगल ग्रह।
सर्प। लोहितं (नपुं०) तांबा।
०रुधिर।
केसर, जाफरान। लोहितवर्णः (पुं०) आरक्तवर्ण। (जयो० १५/२) लोहितकल्माष (वि०) लाल धब्बों वाला। लोहितक्षय (वि०) रुधिर नाश। लोहिनी (स्त्री०) रक्तवर्ण वाली स्त्री। लौकान्तिकः (पुं०) सुर ऋषि। ०देव विशेष। (भक्ति० ३२) लौकिक (वि०) [लौके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण]
सांसारिक, भौतिक, पार्थिव। (जयो० २६/१००)
सामान्य, साधारण, प्रचलित। लौकिक-कल्याणं (नपुं०) सांसारिक हित। (जयो० २७) लौकिकाचरणं (नपुं०) सांसारिक हित। (जयो० २/७) लौकिकज्ञ (वि०) लोक व्यवहार जानने वाला। लौम्य (वि०) [लौके भव:-लोक ष्यञ्] सांसारिक, भौतिक। लौड् (अक०) पागल होना। लौल्य (वि०) [लोलस्य भावः ष्यञ्] चापल्य। (जयो० २३/२८)
तरलता। (जयो० १४/७६) लौह (वि०) लोहे से निर्मित। लौहं (नपुं०) लोहा, अयस्क। लौहजं (नपुं०) लोहे की जंग। लौहबन्ध (पुं०) लोहे की बेड़ी, जंजीर। लौहभाण्डं (नपुं०) लोहपात्र। ल्पी (अक०) मिलना, सम्मिलित होना। ल्वी (सक०) जाना, पहुंचना।
अस्मद् शब्द के षष्ठी एकवचन में :' वः युस्माकं वः श्रीवधमानो भुवि देवदेवः (वीरो०६/१) हमारी, हमारा
अर्थ निकलता है। वं (नपुं०) वरुण, कुम्भ वः कुम्भे वरुणे 'ति' विश्वलोचन
(जयो०वृ० १/१५) व (अव्य०) अथवा, यथा, तदह, जैसा कि। वंशः (पुं०) [वमति उगिरति वम्। श् तस्य नेत्वम्] ०बांस,
वेणु (जयो०वृ० ८४) ०हस्तिकुम्भस्थल। (जयो० ६/८०)
मानदण्ड। (जयो० ६/४०) ०कुल, परिवार, जाति, कुटुम्ब, परम्परा। वंशस्य जाति कनस्य मातुः पिता (सुद० २१) (वीरो० ७७/६) (सुद० १/४२) संग्रह, समूह, समुदाय, संघात, समुच्चय। रीढ़ की हड्डी । ०सालवृक्षा यत्राप्यहो लोचनमैमि वंशे तत्रैव तन्मौक्तिकमित्यशंसे। श्रीदेवकी यत्तनुजापिदूने कंसे भवत्युग्रहीपसून।।
(वीरो० १७/५४) वंशकठिनः (पुं०) बांसों का झुरमुट। वंशकुट (वि०) वंक्ष स्थापक, वंश चलाने वाला, कुल प्रवर्तक। वंशकर्पूररोचना (स्त्री०) वंशलोचन, तवाशीर। वंशकृत् (पुं०) कुल संस्थापक, कुलप्रवर्तक। वंशक्रमः (पुं०) वंशपरम्परा, कुल परम्परा। वंशक्षीदी (स्त्री०) वंसलोचन। वंशगत (वि०) परम्परा को प्राप्त हुआ। वंशगति (स्त्री०) कुलरीति, वंश व्यवस्था। वंशचरितं (नपुं०) कुलपरिचय। परम्परागत परिचय। वंशचिन्तक (वि०) वंश जानने वाला, कुल परम्परा का
चिन्तक। वंशछेत्तु (वि०) कुल का अंतिम व्यक्ति। वंशज (वि०) पूर्वज, कुल परम्परा के। वंशजः (पुं०) सन्तान, प्रजा, पवित्रकुलोत्पन्न। (जयो० १२/१३) वंशजं (नपुं०) वंशलोचनं। वंशज्योति (स्त्री०) कुल परम्परा की प्रभा। वंशतत्त्वं (नपुं०) बांस का सार। वंशनर्तिन् (पुं०) नट, विदूषक। वंशनाडिका (स्त्री०) बांसुरी।
व
वः (पुं०) इसका स्थान अन्तस्थ है। वकार (जयो०१० २/१५)
आभ्यन्तर ईषत् स्पृष्ट। वः (पुं०) पवन, वायु, हवा। ०भुजा, वरुण। (समु० १/४)
समाधान, सम्बोधन, मांगलिक कार्य। निवास, आवास। ०सागर। ०व्याघ्र।
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