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लोकत्रयी
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लोकाग्रहः
लोकत्रयी (नपुं०) तीनों लोक। लोकत्रयीतिलकः (वि०) तीनों लोकों का मुख्य स्थान।
(सुद० १/३६) लोकद्वारं (नपुं०) स्वर्ग स्थान। लोकधर्मः (पुं०) जनता का धर्म। (वीरो० २२/१६) लोकधातु (पुं०) संसार की श्रेष्ठ वस्तु। लोकधातु (पुं०) आदि ब्रह्म, शिव, विधाता। (वीरो० १८/१७) लोकधैर्य (वि०) लोगों की धीरता। लोकनाथः (पुं०) आदि प्रभु, शिव। लोक निर्गत (वि०) संसार से निकलता हुआ। (जयो० २/१७) लोकनेतृ (पुं०) आदीश्वर, शिव। लोकनिन्दालयः (पुं०) जनापवाद। (जयो०वृ० १/६७) लोकपः लोकपालः (पुं०) दिक्पाल। राज, प्रभु। लोकपतिः (पुं०) ब्रह्मा। राजा, प्रभु। नरशिरोमणि (जयो०७०
१/८३) लोकपथः (पुं०) संसार पद्धति, विश्व की परम्परा। (सम्य०
६१)
लोकपद्धतिः (स्त्री०) लोक रीति। लोकपितामहः (पुं०) ब्रह्मा। लोकप्रान्तः (पुं०) सर्व प्राप्त। (वीरो० १४/४६) लोकप्रकाशनः (पुं०) सूर्य। लोकप्रख्यान: (पुं०) लोक प्रसिद्ध। (वीरो० १५/१६) लोकप्रवादः (पुं०) एक पूर्व विशेष। सर्वसाधारण में प्रचलित
बात। लोकप्रवाहः (पुं०) जनसमूह। (दयो० ८१) लोकबन्धु (पुं०) सूर्य, दिनकर, भानु। लोकबाह्य (वि०) समाज से बहिष्कृत्। लोकमातृ (स्त्री०) लक्ष्मी। लोकमार्गः (पुं०) लोक सम्मत प्रथा, जनप्रचलित पथ।
(जयो० १) लोकमार्गदशिन (वि०) जन-जन की वास्तविकता को दिखलाने
वाला। लोकमूढता (स्त्री०) लोक में अन्ध विश्वास। (जयो० २/८७) लोकमूर्खता देखो ऊपर। लोकयात्रा (स्त्री०) लोक व्यवहार, जीवनचर्या, आजीविका,
वृत्ति। (वीरो० १८/४०) लोकरक्षः (पुं०) नृप, राजा, प्रभु। लोकरञ्जनं (नपुं०) सर्व साधारण का अनुरञ्जन।
लोकरवः (पुं०) जनश्रुति, सर्वमान्य चर्चा। लोकरीतिः (स्त्री०) लोक पद्धति। (जयो० २/६) लोकलोचनं (नपुं०) सूर्य, रवि। लोकलो पिन् (वि०) लोकोत्तर, अनु पम।
'लोकलोपिलवणापरिणाम:' (जयो०५/२६) लोकवचनं (नपुं०) किंवदन्ती, लोकवाता, जनश्रुति। लोकवर्मन् (नपुं०) लोक प्रचलित मार्ग। (जयो० २/१७)
संसारिक मार्ग। (सुद० १३२) लोकवादः (पुं०) जनचर्चा, जनप्रवाद। लोकविधिः (स्त्री०) लोक प्रचलित क्रिया। लोकवित्त (वि०) लोक की जानकारी। (जयो० १९/४४) लोकविपरीत (वि०) संसार से भिन्न, लोगों की मान्यता से
पृथक्। (जयो० २/१५) लोकवृत्तं (नपुं०) लोक व्यवहार। ०लोक चर्चा, जनवाद। लोहव्यवहारः (पुं०) लोकरीति, लोक परम्परा। (वीरो० १९/२१) लोकश्रुतिः (स्त्री०) जनश्रुति। ०जनप्रवाद। लोकसंकरः (पुं०) लोक की अव्यवस्था। लोक के एकमात्र
गुरु ऋषभदेव। (जयो० २/९०) लोकसंग्रहः (पुं०) लोककल्याण। शिव, ब्रह्म। लोकसमयः (पुं०) लोकशास्त्र। (जयो०वृ० १/१९)
लोक सिद्धान्तः (दयो० १/८) लोकसम्प्रदायः (पुं०) जनसमूह। (दयो० २०) लोकसमयख्यातिः (स्त्री०) लोकशास्त्र में प्रसिद्ध।
- (जयोवृ० १/५) ०जनप्रवाद, लोकबिंदुसार। लोकसिद्ध (वि०) लोक प्रचलित। लोकस्थिति (स्त्री०) संसार का संचालन, संसारिक अस्तित्व। लोकहास्य (वि०) जन परिहास। लोकहित (वि०) जन जीवन का कल्याण। लोकहितैकलोपी (वि०) संसार हित का एकमात्र नाशक। ___ (वीरो० १८/१८) लोकाकाशः (पुं०) धर्मादिद्रव्य से युक्त प्रदेश, लोक से
सम्बंधी आकाश। (सम्य० १९) लोकाख्यानं (नपुं०) लोक का उद्देश्य। लोकाग्रः (पुं०) लोक का अग्रभाग। (भक्ति० २) जहां तक
छह द्रव्य का अन्तिम भाग है। (सम्य० ५८) लोकाग्रशिखामणिः (स्त्री०) सिद्धशिला। (भक्ति० ३४) ___ सिद्धस्थान। लोकाग्रहः (वि.) वर्णन का आग्रह। (जयो० १०/११९)
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