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लहरिमति
९१०
लाञ्छ
लहरिमति (स्त्री०) समुत्कण्ठावती, उत्कण्ठित बुद्धि वाली। लागुडिक (वि०) यष्टि विभूषित। (जयो० १७/२५)
लाथ् (अक०) बराबर होना, पर्याप्त होना, सक्षम होना। लहरियुक्त (वि०) भूरिवलिबद्ध। (जयो०वृ० २०/२)
लाघवं (नपुं०) [लघोर्भावः अण्] ०अल्पता, क्षुद्रता, लघुता। लहरी (स्त्री०) [ल+ह+इन+ङीष] तरंग, जलकल्लोल। ०हल्कापन, नगण्यता। (वीरो०७/२४)
०अनादर, घृणा, अपमान, अप्रतिष्ठा। ला (सक०) ग्रहण करना, प्राप्त करना, लेना, लाना। | फुर्ती, चुस्ती, वेग। (जयो०१/७) लाति-गृह्णातीति
क्रियाशीलता, दक्षता, तत्परता। लान्ति। (जयो०१/३९) (जयो० १/७२)
संक्षेप, अल्पमात्रा। लघो वो लाघवं-लोभनिवृत्ति। ला (स्त्री०) समागम, दान, देना। गौ पुमान् वृषभे स्वर्गे
०दक्षता- व्यसनोपनिपात। खण्डवज्रहिमांशुषु। ला तु दाने किलाश्लेष इति कोषात्
०शुचिता-कुशलता। व्याख्या कार्या। (जयो०व०० ३/३९)
लाङ्गलं (नपुं०) [लङ्ग+कलच] ०हल। ०लाभ। (जयो०वृ० १९/३६)
ताडवृक्ष।
शिश्न। लाकुटिक (वि०) [लकुटः प्रहरण मस्य ठक्] लाठी से सुशोभित, दण्ड से विभूषित।
लिंग। लाकुटिकः (पुं०) संतरी, पहरेदार, द्वारपाल।
लाङ्गलग्रहः (पुं०) किसान, कृषक, हाली। लाक्षकी (स्त्री०) सीता।
लाङ्गलदण्डः (पुं०) हलस, हल का दण्ड। लाक्षणिक (वि०) [लक्षणया बोधयति ठक्] विशिष्ट, संकेतित,
लागलपद्धतिः (स्त्री०) खूड, हल की रेखा। चिह्नित।
लाङ्गलफाल: (पुं०) हल्की फाली।
लाङ्गलिन् (पुं०) [लाङ्गल+इनि] ०बलराम। ०पारिभाषिक, गौण, निकृष्ट।
नारिकेल तरु। लाक्षणिकः (पुं०) पारिभाषिक शब्द।
लाङ्गली (स्त्री०) [लाङ्गल+अच्+ङीष्] नारिकेल तरु। लाक्षण्य (वि०) [लक्षणं वेत्ति-व्य] संकेत सम्बंधी, परिभाषा
लाङ्गलीषा (स्त्री०) हलस, हल की मूठ। सम्बन्धी।
लागुलं (नपुं०) पूंछ। चिह्न युक्त, लक्षण और चिह्नों की व्याख्या करने योग्य।
शिश्न। लाक्षा (स्त्री०) [लक्ष्यतेऽनया लक्ष्+अच्] ०लाख, जतुपरिणति
लिंग। (जयो०१२/१०६)
लागृलं (नपुं०) पूंछ, शिश्न। महावर, वीरबहूटी।
लिंग। लाक्षातरु (पुं०) पलास, ढाकतरु।
०बंदर। (दयो० १६) लाक्षाप्रसादः (पुं०) लोध्रवृक्षा
लाङ्गुलिन् (पुं०) [लाङ्गल+इनि] वानर, बन्दर, लंगूर। लाक्षाप्रसाधनः (पुं०) लोध्रवृक्ष।
लालिकाफलं (नपुं०) नालिकेर, नारियल। (जयो० २५/११) लाक्षारंगः (पुं०) यावक, लाक्षारस। (जयो० १८/९९)
लाज् (सक०) कलंक लगाना, निन्दा करना। लाक्षारक्त (वि०) लाख से रंगा हुआ। ०लाख से लिपटा
भूनना, तलना। हुआ।
लाजः (पुं०) [लाज+अच्] गीला धान। लाक्षारसः (पुं०) लाल रंग, महावर, आलक्त। (जयो० १६/५१) लाजा (स्त्री०) लाजे, खील, धान्य के फूले हुए लाजा। लाक्षावाणिज्यं (नपुं०) लाख का व्यापार।
(जयो० १२/७१, सुद० ३/१५) भ्रष्टव्रीही (जयो० १३/१०) लाक्षिक (वि०) [लाक्षा+ठक्] लाख से सम्बंध रखने वाला, धान्य लावा। (जयो० १०/१०३) लाख से बना हुआ।
लाजि (स्त्री०) राजि, पंक्ति। (जयो० ३/४७) लाख (अक०) सूख जाना, नीरस होना।
लाञ्छ् (सक०) सजाना, अलंकृत करना। ०सक्षम होना, पर्याप्त होना।
०भेद करना, विशिष्ट बनाना।
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