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रिपुसम्पदः
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रुच/रुचा
कमजोर, हीन, क्षीण।
बलहीन, शक्तिरहित। रिपुसम्पदः (पुं०) शत्रु सम्पत्ति। (जयो० ६/५९) रिपुसारः (पुं०) वैरिशिरोमणि। (जयो० ६/२४) रिफ् (अक०) कलंक लगाना। रिष् (सक०) क्षति पहुंचाना, चोट पहुंचाना।
नष्ट करना, मार डालना। (रिषन्-मारयन्) (जयो०३/६)
संहार करना (जयो० ३/५) रिषन्-संहरन्। रिष्ट (भू०क०कृ०) [रिष+क्त] क्षतिग्रस्त, चोटग्रस्त।
अभागा। (जयो० ६/१३२) रिष्टं (नपुं०) उत्पात, क्षति, ठेस। __०दुर्भाग्य, विनाश, हानि।
०सौभाग्य, समृद्धि। रिष्टिः (पुं०) [रिष्+क्तिन्] असि, तलवार। री (अक०) टपकना, गिरना, रिसना, बहना, पसीजना। री (स्त्री०) कर्ण, कान। (श्रोतरि भुवि स्त्रियामिति)
(जयो० ५/९५) रीज्या (स्त्री०) निन्दा, झिड़की।
कलह, ईर्ष्या। रीढकः (पुं०) मेरु दण्ड, रीढ की हड्डी। रीढा (स्त्री०) [रीह+क्त+टाप्] अनादर, तिरस्कार, अपमान। रीण (भू०क०कृ०) [री+क्त] टपका हुआ, रिसा हुआ, झरता
हुआ। रीणा (स्त्री०) उदासीनता, उदासीना। 'रीणात्युदासीना सती
मुहः' (जयो० ११/४७) 'जिता हरिण्यो द्रुताश्च रीणाः'
(जयो० १४/५०) रीतिः (स्त्री०) [री+क्तिन्] ०पद्धति, क्रम। ०प्रणाली, ढंग, मार्ग, शैली, विधा, प्रक्रिया।
नीति। (जयो० १/२१) ०प्रथा, प्रचलन। (सुद० १०२) ०वाक्यविन्यास। ०आरकट, पीतल-रीतिः स्यन्दे प्रचारे च लोहकिट्टारकूटयो इति वि० (जयो० २८/४३) हसोऽभ्यवापि काकस्य रीतिः सौवर्ण्य भागिति। प्रतिलोमविचारेण सोऽहमित्यनुवादिना।। (जयो०७० ३/४) ०प्रकार-शीतिरीतिमपि तच्छ्रुत्वा' (जयो० २/६०) विचार-समन्ताद्भद्र विख्याता श्रियो भूराप्तपथरीतिः। (सुद० ८३)
रीतिकरी (वि०) विचार करने वाली। (जयो० १५/३८) रीतिसृद्धिः (स्त्री०) पदरीति। शब्द शक्ति। रीतिज्ञ (वि०) रीति जानने वाला। पद्धति विचारक। रीतिधर (वि०) पित्तलयुक्तं (जयो०८/६६) ___रीकार सहित। (जयो०वृ० ८/६६) रु (अक०) बोलना, चिल्लाना, शब्द करना।
रोना, शोर करना। रुक (स्त्री०) रुचि, शोभा, कान्ति। (जयो० ६/७५, ५/८१) रुक्कर (वि०) रुचिकर। (सुद०८९) रुक्म (वि०) [रुच्+मन्] उज्ज्वल, स्वच्छ, धवल। रुक्मः (पुं०) स्वर्णाभूषण। रुक्म (नपुं०) स्वर्ण सोना।
०लोहा। रुक्मकारकः (पुं०) सुनार। रुक्मिन् (पुं०) [रुक्म् इनि] रुक्मिणी का भाई। रुक्मिणी (स्त्री०) [रुक्मिन्+ङीप] विदर्भ शासक भीष्मक
की पुत्री। रुक्ष (वि०) रुखा, बालुकामय। रुक्षु (अक०) चढ़ना, आरुढ़ होना। (अरुक्षत्) (जयो०८/६०) रुखं (नपुं०) निर्भय होना। रोर्भयस्य खं शून्य नाशरूपं
निर्भयनिवासस्थानं सम्भवति' (जयो० ११/५१) दृग्व्यापार
(जयो०वृ० ११/५०) सदृश (सुद० १०२) रुग् (पुं०) रोगी। (सुद० १०१) रोग (सम्य० ४६) रुग्ण (भू०क०कृ०) [रुज्+क्त] ०रोगी, ज्वर ग्रस्त, व्याधि
पीड़ित। ०व्यथीकृत, वकीकृत। ०क्षतिग्रस्त, टूटा हुआ। 'जो बुखार आदि के वश होकर अपना धन्धा न कर पाए। (हित०सं० ४९) (जयो०
१४/८५, जयो० ११/५२) रुच् (अक०) चकमना, जगमगाना।
०पसंद करना, सुहावना करना।
प्रसन्न होना। ०रुचना, अच्छा लगना। 'न रोचते चेदमुकास चौरतुजे'
(समु० १/१६) रुच/रुचा (स्त्री०) कान्ति, प्रभा, प्रकाश। (जयो० १०/३)
आपं चैव हलतानां यथा वाच। निशा दिशा। रंग, छवि। इत्युक्ते रुच् शब्दादाप् प्रत्यय। (जयो० २ २/१४)
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