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स्वेदजलश्पूरः
१२३४
हजा/हंजे
स्वेदजलश्पूरः (पुं०) श्रमनीरनिर्झर। (जयो०व० १३/७८)
० विष्णु, ब्रह्मा। स्वेदनं (नपुं०) पसीना, श्रमनीर। (जयो० १२/१२९)
० पर्वत, गिरि। स्वेदमिष (वि०) पसीने के बहाने। (वीरो० १२/१५)
हंसकः (पुं०) [हंस+कन] मराल, कारंडव। स्वेदयुक्त (वि०) पसीने से सराबोर। (जयो०३/८३) हंसकान्ता (स्त्री०) हंसिनी, हंसी। स्वेदोदम/स्वेदोदकम् (नपुं०) पसीना, श्रयनीर, श्रमबिन्दु। हंसकीलकः (पुं०) रतिबंध की क्रिया। स्वेदोदबिन्दु (नपुं०) स्वेदकण। (जयो० १७/५०) हंसगति (स्त्री०) राजसी गति, मंद एवं स्थिरगति। स्वेचित (वि०) स्वयोग्य। (जयो० २/१७)
हंसगद्गदा (स्त्री०) मधुरालपिणी स्त्री। स्वोचितवृत्तिः (स्त्री०) निजकुल परम्परा का व्यवहार। (जयो० हंसगामिनी (स्त्री०) राजसी गति वाली स्त्री। २/११०)
हंसध्वनिनिर्बन्धनम् (नपुं०) हंस की ध्वनि का होना। स्वोच्चवर्गः (पुं०) सर्वप्रधानवर्ग। (वीरो० २।८)
(वीरो० २१/१८) स्वैर (वि०) [स्वस्य ईरम् ईद्+अच्] स्वच्छन्द, स्वेच्छाचारी, | हंसदाहनम् (नपुं०) अगर की लकड़ी। अनियंत्रित, निरंकुश।
हंसनादः (पुं०) हंस का कलरव। ० स्वतंत्र।
हंसनादिनी (स्त्री०) मधर संभाषिणी स्त्री। ० मंथर, मंद।
हंसपदं (नपुं०) हंस का स्थान। स्वैरम् (अव्य०) इच्छा के अनुसार।
हंसमाला (स्त्री०) हंसों की पंक्ति। स्वैरविहारिणी (वि०) आराम से, यथेष्छ गमनशील। हंसय् (अक०) हंस के समान प्रतीत होना। शशी विहायः (जयो०१/२०)
सरसि प्रसन्नो हंसायते मेचकं शैवलाशी। (जयो०१५/६५) स्वैरिणी (स्त्री०) स्वेच्छाचारिणी, असती, कुलटा, व्यभिचारिणी। हंसायते, हंस इव लक्ष्यते। स्वैरित (वि०) स्वेच्छाचार युक्त। (जयो० २/१३६) मनमानी हंसयुवन् (पुं०) युवा हंस। (जयो० २३/७१)
हंसरथः (पुं०) ब्रह्मा। स्वैरिन् (वि.) [स्वेन ईरितं शीलमस्य-स्व ईर-णिनि] हंसखः (पुं०) हंस का कलख। (वीरो० २१/५) स्वेच्छाचारी, मनमानी करने वाला।
हंसलोमशकम् (नपुं०) कासीस। स्वोरसः (पुं०) पसीने से तर।
हंसलोहकम् (नपुं०) पीतल। स्वोवशीयम (नपुं०) आनंद. समद्धि।
हंसवाक् (नपुं०) हंस वचन। (जयो० ६/१६) स्वौकः (पुं०) कल्याण में अद्वितीय, स्थान। स्वस्य परेषाञ्च हंसश्रेणी (स्त्री०) हंसों की पंक्ति। कल्याणानामेकमद्वितीयम ओक: स्थानमभूत्। (जयो० ३/२) हंसाङ्घिः (पुं०) सिंदूर।
हंसाधिगता (स्त्री०) भारती, सरस्वती। ह (अव्य०) बलबोधक निपात।
हंसाधिरुढा (स्त्री०) सरस्वती, भारती। हः (पुं०) आकाश नभ।
हंसिका (स्त्री०) हंसनी, हंसी। मादा हंस। (जयो०१/७४) ० जल, ० रुधिर।
हंसी (स्त्री०) हंसिनी। हंसः (पुं०) [हस्+अच्] मराल, मुर्गाबी। (सुद० ३/३) हंसः हंहो (अव्य०) [हम् इत्यव्यक्तं जहाति-हम-हा-डो] ० सम्बोधन सूर्यमरालयाः इति वि (जयो० १५/१२)
वाचक अव्यय। ० सूर्य। (जयो० २/५) हंस पक्ष्यात्सूर्येषु इत्यमरः ० नाटकों में प्रायः इसी तरह का बोध किया जाता है। (जयो०१५/१२)
हकारः (पुं०) ह व्यञ्जन। ० मानसपक्षी। (जयो०वृ० ३/६३)
हकारपर्यन्त (पुं०) अ से ह तक। (जयो० ११/८०) • जीवात्मा, परमात्मा।
हक्कः (पुं०) हस्ति आह्वान की एक शैली। ० वायु, पवन, वरटापति। (जयो० २५/५२)
हंजा/हंजे (अव्य०) दासी को बुलाने के लिए नाटक में यह ० सूर्य। (जयो० १५/१२)
प्रयोग होता है।
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