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स्वशुरः
१२३१
स्वादिष्ठ
स्वशुरः (पुं०) अपने पति का पिता या पत्नी का पिता। स्वश्री (स्त्री०) आत्म लक्ष्मी। (जयो० ३/७१) स्वसृ (स्त्री०) [सू+असृ+ऋन्] भगिनी बहिन। सासू (जयो०
२/१३२) स्वसार्थिन् (वि०) अपना साथी। (वीरो० १५/२६) स्वसृत (वि.) [स्वास+क्विप्] अपनी इच्छा से जाने वाला,
स्वतंत्र चलने-फिरने वाला। स्वस्थ (वि०) आनंद, क्षेमपूर्ण, कुशल। (सम्य० १३५)
(दयो० ३०) स्वस्थानम् (नपुं०) अपना स्थान। स्वस्थाननिवेश: (पुं०) अपने आवास में प्रवेश। (जयो०वृ०
६/१३२) स्वस्मात् अस्पृष्ट होना। (सुद० १०९) स्वस्वान्त (वि०) इन्द्रिय निग्रह युक्त। (वीरो० १८/२८) स्वस्ति (अव्य०) [सु+अस्+क्तिच] वा अस्तीति विभक्तिरूपकं
अव्ययम्। कल्याण हो, शुभ हो, अभिवंदनीय हो, नमन
योग्य हो, जयवंत हो। (दयो० २९) स्वस्तिकः (पुं०) [स्वस्ति शुभाय हितं क] (जयो० २४/९२)
एक मांगलिक चिह्न। अष्ठ प्रतिहार्यों में से एक मंगल प्रतीक। मंगलकारी। (जयो० २/३४)
० अष्टमंगल द्रव्य। (जयो० १२/७) स्वस्तिमुखः (पुं०) पत्र, मांगलिक पत्र।
. स्तुति पाठक। स्वस्थिताक्षमनस् (वि०) आत्मवशीभूतेन्द्रियचित्त। (जयो० २/२३) स्वस्त्रीयः (पुं०) [स्वस्+छ ढक् वा] भानजा, बह्नि का पुत्र। स्वस्त्रीया (स्त्री०) [स्वस्त्रीय+टाप्] भानजी, बहिन की पुत्री। स्वदृशा (वि०) स्वामी। (सुद० २/४९) । स्वहित (वि०) आत्महित, अपना कल्याण। (भक्ति० ३१) स्वहृदयदेशः (पुं०) हृदय का टुकड़ा। (दयो० ५५) स्वाकूतसाङ्केतः (पुं०) अपने अभिप्राय का संकेत। (सुद०
२/३२) स्वागतम् (नपुं०) [सु+आ+गम्+क्त] शुभागमन, शुभ अभिवादन।
(जयो० १२/१४३) उचित समागम, श्रेष्ठ भाव युक्त, आगमन। (जयो० ५/१८) ० प्रतिग्रह। (दयो० ११५) सम्मानजनक आगमन।
(दयो०१०५) स्वागतगानम् (नपुं०) शुभागमन का गीत। (दयो० १८) स्वागच्छम् (नपुं०) स्वागत, शुभागमन। (सुद० ७८)
स्वाङ्किकः (पुं०) [स्वाङ्क ठक्] ढोल बजाने वाला। स्वाचारसिद्धिः (स्त्री०) अपने इच्छा से कार्य करने की
अभिलाषा, स्वच्छंदता, स्वतंत्रता। स्वातन्त्रयम् (नपुं०) स्वतंत्रतापूर्वक। (जयो० ७/१५) स्वाधीनता।
स्वच्छन्द। (जयो० १३/११०) स्वातन्त्र्यप्राप्तिः (स्त्री०) स्वतंत्रता की उपलब्धि। (जयो०
१८४८१) स्वातिः (स्त्री०) [स्व+अत्+ इन्] सूर्य की पत्नी।
० स्वाति नक्षत्र। (सुद० )
० शुभ नक्षत्र पुंज। स्वातियोगः (पुं०) चन्द्रयोग। स्वात्मन् (पुं०) निजात्म। (सुद० १२२)
० आप। (जयो० ४/२३) ० अपना आत्मा। (सम्य० ८३) • अपने आप। स्वात्मानमुज्जीवयतीति शस्यः। (जयो०
१/७६) स्वात्मगत (वि०) आत्माधीन। स्वात्मजन्य (वि०) आत्मा से युक्त। स्वात्मपरिणतिः (स्त्री०) अपनी आत्मा परिणति। (जयो०७०
२३/७२) स्वात्मभावः (पुं०) अपने आत्मा का भाव। स्वात्मविचारणा (स्त्री०) आत्मानुभूति। (सुद० ९६) स्वात्मस्थित (वि०) निजात्मगत। (भक्ति० २३) स्वात्मीय (वि०) अपने आत्मगत। (मुनि० १८) स्वादः (पुं०) [स्वद्+घञ्] रस, चखना, खाना, स्वाद लेना
रसास्वादन करना। ० पसन्द करना।
० उपभोग करना। स्वादनम् (नपुं०) [स्वद्+ल्युट्] रस, चखना, खाना, आस्वाद
लेना। (जयो० २७/१४) ० पसंद करना।
० उपभोग करना। स्वादनवृत्ति (स्त्री०) स्वादुभोजन विचार। (जयो० २७/१४) स्वादिमन् (पुं०) [स्वाद इमनिच्] माधुर्य, रसभावता, आस्वादन
रूपता। स्वादिष्ठ (वि.) [स्वादु+इष्ठन्] सबसे माधुर्य युक्त, अत्यन्त
मधुर। ० श्वसन। (भक्ति० १५)
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