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स्थूलकाय
१२१७
स्नातकत्व
स्थलकाय (वि०) मोटी, मांसल, पुष्ट शरीर वाला। स्थूलक्षेड:/क्ष्वेडः (पुं०) बाण। स्थूलचापः (पुं०) धनुकी। स्थूलतनु (नपुं०) मोटा शरीर। (मुनि० ) स्थूलता/स्थूलत्व (वि०) भारीपन, विशालता, मुटापा। स्थूलतालः (पुं०) हिंताल। स्थूलधी (स्त्री०) मूर्ख, मूढ, बुद्ध। स्थूलनालः (पुं०) सरकंडा। स्थूलनास/स्थूलनासिका (वि०) मोटी नाक वाला। स्थूलपटम् (नपुं०) मोटा कपड़ा। स्थूलपट्टः (पुं०) कपास। स्थूलपाद (वि०) मोटे पैर वाला, सूजे हुए पैरों वाला। स्थूलपादः (पुं०) श्लीपद नामक रोग, पैरों में मुटापा नामक
रोग। ० हस्तिपद की तरह पैर होना। स्थूलफलः (पुं०) सेमल, शाल्मली। स्थूलभद्रः (पुं०) एक जैनाचार्य। (वीरो० २२/३) स्थूलभागः (पुं०) मोटा भाग। (जयो०वृ० ११/२०) स्थूलमति (वि०) बुद्ध, मूढ, मूर्ख। स्थूलमानम् (नपुं०) बड़ा हिसाब। ० विस्तृत प्रमाण।
० सम्पूर्ण हिस्सा। स्थूललक्ष (वि०) दानशील, उदार। स्थूलक्ष्य (वि०) लाभ-हानि ध्यान रखने वाला। स्थूलशङ्का (स्त्री०) बड़ी सी आशंका। स्थूलशरीरम् (नपुं०) नश्वर शरीर। स्थूल शाटकः (पुं०) मोटा कपड़ा। स्थूलशीर्षिका (स्त्री०) छुद्र पिपीलिका। स्थूलषट्पादः (पुं०) ० भ्रमर, भौंरा। स्थूलस्कन्धः (पुं०) लडुच वृक्ष, बड़हल तरु। स्थूलस्तम् (नपुं०) हस्ति शुण्ड। स्थूलान्त्रम् (नपुं०) बड़ी आंत। स्थूलास्यः (पुं०) सर्प, सांप। स्थूलिन् (पुं०) [स्थूल+इनि] ऊंट, उष्ट्र। स्थेय (वि०) [स्था+यत्] निर्धारित करने योग्य, रक्खे जाने
योग्या स्थेयः (पुं०) पंच, निर्णायक। स्थेयस् (वि०) दृढ़तर। स्थेष्ठ (वि०) [स्थिर+इष्ठन्] अत्यन्त दृढ़, बलवान्। स्थैर्यम् (नपुं०) [स्थिर+ष्यञ्] स्थिरता, दृढ़ता, अचलता।
निश्चलता, निरन्तरता। ० संकल्प, स्थायित्व।
० सहनशीलता, ठोसपना। स्थौणेयः (पुं०) एक गन्ध द्रव्य। स्थौरमः (नपुं०) [स्थूर+अण्] शक्ति, बल, दृढ़ता, सामर्थ्य। स्थौरिन् (नपुं०) [स्थौर+इनि] टैटू, बोझा ढोने वाला घोड़ा। स्थौल्य (वि०) विशालता, हृष्ट पुष्टता। स्थौल्यः (पुं०) उत्तरप्रान्त। (वीरो० २२/३) स्वपनम् (नपुं०) [स्ना+णिच्+ल्युट्]
० स्नान करना, नहाना, ढुबकी लगाना। ० छिड़कना, सिंचन करना।
० अभिषेक, अभिसिंचन। (मुनि० २८) स्नपनभावः (पुं०) अभिषेक। (जयो० ९/५४) स्नपित (वि०) अभिसिंचित, अभिषेक युक्त। (सुद०३/१४) स्नपनाः (पुं०) स्नान से गीला। (जयो० १४/९३) स्नपयति-स्नान करना। (जयो० २४/६०) स्नवः (पुं०) [स्नु+अप्] टपकना, गिरना, रिसना, झरना। स्नस् (अक०) बसना, ठहरना, रहना। स्ना (अक०) नहाना, स्नान करना। (भक्ति० ५)
श्रीपतिं जिनमिवार्चितुं पुरा स्नान्ति दिव्यतनरोऽपि ते सुराः। (जयो० २/४०)
० नहलाना, गीला करना, तर करना। स्नातक (वि०) कृत स्नान वाला, जल में डुबकी लगाने वाला।
(जयो०७० २८/२०) स्नातकः (पुं०) [स्ना+क्त+क] सम्पूर्ण घातिया कर्म को नाश
करके केवल ज्ञान को प्राप्त होने वाला मुनि। (तसू० ९/४५) प्रक्षीणप्पातिकर्माणः केवलिनो द्विविधाः स्नातकाः। (स०सि० ९/४८) ० अर्हत्। (जयो०वृ० २८/२०) ० सुसंस्कृत (जयो०वृ० २४/६०)
० अनुष्ठेय विधि को समाप्त करने वाला ब्रह्मचारी। स्नातकता (वि०) स्नातक दशा।
मनोरथा रूढतयाऽथवेत:
केनान्वितः स्नातकतामुपेतः। (वीरो० १२/३९) स्नातकत्व (वि०) ० कृत स्नान वाला। (जयो०१० २८/२०)
० अर्हतत्त्व को प्राप्त होने वाला। (जयो०० २८/२०) ० स्नातक पना। स्वान्तं हि क्षालयामास,
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