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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्थावर नामकर्म: ० ० शाण्डिल्य ब्राह्मण और पाराशरिका नामक ब्राह्मणी का पुत्र स्थावर, जो पूर्वजन्म में महावीर की एक पर्याय का जीव था। जो राजगृह नगर में देवयोनी से च्युत होकर विश्वनन्दी ब्राह्मणी का पुत्र भी हुआ। (वीरो० ११ / १०, ११) स्थावर नामकर्म: (पुं०) एकेन्द्रिय का प्रादुर्भाव । स्थावरप्रतिमा ( स्त्री०) व्यवहार से पत्थर आदि की प्रतिमा को भगवान् मानना। स्थाविर (वि०) दुढ़, शक्तिसम्पन्न, मोटा । स्थासकः (पुं०) [स्था+स+स्वार्थादौ क] सुगन्धित लेप करना, विलेपन करना। स्थासु (नपुं० ) [ स्था+सु] दैहिक शक्ति | स्वास्नु (वि०) (स्थास्नु] स्थिर, दृढ, शक्तिशाली। स्थायी, नित्य । स्थित (भू०क०कु० ) ( स्था+क्त] खड़ा हुआ, ठहरा हुआ। पारावार इव स्थितः पुनरहो शून्ये श्मशाने तया । ( सुद०९८) ० अवस्थित (सुद० ३ / १२) गिरमर्थयुतामिव स्थितां ससुतां संस्कुरुते स्मं तां हिताम् । ( सुद० ३ / १२) • ध्यानस्थ (सुद० ४/२३) मुनि हिमत द्रुममूल देशं स्थितं • रुका हुआ, दृढ़ता युक्त खड़ा हुआ। निर्धारित अवधारण किए हुए अवधूतमात्र www.kobatirth.org " ० सहमत, व्यस्त, निकटस्था स्थितकल्प: (पुं० ) ० आचेलक्य आदि दश कल्पों / स्थानों में स्थित होने वाला साधु । ० ध्यानस्थ श्रमण | स्थितिः (स्त्री० ) [ स्था+क्तिन्] ० परिपालन (सुद० ९७) परिस्थिति, दशा, अवस्था । ० रहना, टिकना, खड़े होना । अघभूराष्ट्र- कण्टकोऽयं खलु विपदे स्थितिरस्याभिमता (सुद० १०५) ० अवस्था। (जयो० २/४७) ० पावन स्थान, स्थिर होना। • यति, विराम, विरति । ० अध्यादेश, आज्ञप्ति निश्चित समय निर्धारण। ० अवस्थान, निष्ठापन। (जयो० ३/४७) स्तोत्रस्य स्थितिर्निष्ठापनम् । देवागमस्थिति, देवस्यागमनं देवागमस्तस्य स्थितिरवस्थानम् (जयो०वृ० ३/६७) प्राकृति, स्वभाव- किं तेभ्यो वपुषा नास्ति भवतः सम्बंध एषा स्थितिः (मुनि० १७ ) • स्वरूप | ( सुद० ११७) ० निज भाव, आत्मभाव। ० सत्त्व (जयो०वृ० १/ २२४ ) वस्तु रहस्य | ० १२१६ ० कालपरिच्छेद। ० कालावस्थान । कालकृत व्यवस्था । ० सत्ता (जयो० १/४२) ० पदार्थ की अवस्था । ० परिणाम । ● अपने मार्ग में स्थित रहना। स्थितिकरणं (नपुं०) अस्थिर को स्थिर करना, दृढीकरण, सुमार्ग में संलग्न करना। (जयो०वृ० १८/४५) • सम्यग्दर्शन से आठ अंगों में से एक अंग स्थितिकरण अंग । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थितिक्षयः (पुं०) काल क्षय । स्थितिबन्धः (पुं०) जो बांधा जाए, जिन परिणामों से स्थिति बंधती है। जो कर्म बांधा गया वह जब तक अपने कर्मपने को न छोड़े वही स्थितिबन्ध है। (त०सू० ८/३) स्थितिभोजनम् (नपुं० ) शुद्धस्थान पर स्थित होकर भोजन लेना। स्थितिविधिः (स्त्री० ) निर्वाह विधि, स्थितिकारीमार्ग । स्थितेर्निर्वाहस्य विधियंत्र (जयो०० २/९१) स्थिर (वि०) [स्था+किरच्] ० दृढ़ शक्तिशाली, धैर्य युक्त। ० अचल, शान्त, प्रसन्न मे त्वं मनसि स्थिरा स्याः । (जयो०वृ० १९ / ३६) ० सचेत, सजग, निश्चल। (जयो० ११/७) (जयो०१/५) ० कठोर (जयो०वृ० १/५) ० सुस्थ, सुस्त ( भक्ति०३२) ० धीर, गम्भीर । स्थिरत्व (वि० ) योग स्थान का दृढ़ पालक । स्थिरा (स्त्री०) पृथ्वी, भू, भूमि । स्थिराशय: (पुं०) निश्चलपाति, अभिप्राय । (जयो० १३/५९) स्थूलम् (नपुं० ) [स्थुड्+अच्] लम्बा तम्बु, डेरा | स्थूणा ( स्त्री०) स्तम्भ, खंभा, दण्ड । (जयो० १/२५) ० धन, लौह प्रतिमा। स्थूणाकृतिः (स्त्री०) दण्डाकृति, शुण्ड, हस्ति शुण्ड । (जयो०वृ० १/२५) स्थूम (पुं०) प्रभा, कान्ति, प्रकाश । ० चन्द्रमा शशि । स्थूर : (पुं० ) [ स्था+अरन्] सांड । ० स्थूल ● मनुष्या स्थूल (वि०) [ स्थूल+अच्] मोटा, मांसल, पुष्टतर। (जयो०वृ० ४ / ६० ) ० प्रगाढ़ । विस्तृत, बड़ा, बृहत्, विशाल । बेडौल, भहा। सम्पूर्ण साधारण । ० ० For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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