________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
स्त्रीकामः
स्त्रीकाम: (पुं०) स्त्रीसंभोग का इच्छुक, पत्नी चाह । स्वीकार्यम् (नपुं०) नारी धर्म
www.kobatirth.org
स्वीकुसुमम् (नपुं०) रज:स्राव, स्त्रियों का मासिक धर्म
स्त्रीक्षीरम् (नपुं०) माता का दूध । स्त्रीगवी (स्त्री०) दूध देने वाली गाय स्त्रीगुरु (स्त्री०) पुरोहितानी, पंडितानि । स्त्रीघोष: (पुं०) प्रभात प्रातः, पौ फटना । स्वीचिह्नम् (नपुं०) स्त्रीयोनि, स्त्रीत्वभाव। स्वीचौर : (पुं०) लम्पट स्त्री ।
|
स्त्रीजन (पुं०) स्त्री समूह (वीरो० २/४०) स्त्रीजननी (स्त्री०) कन्या जन्मदात्री | स्त्रीजाति: (स्त्री०) स्त्रीवर्ग, नारी समुदाय स्त्रीजित (वि०) नारियों को वश में करने वाला जोरु, गुलाम स्त्रीताडनम् (नपुं०) नारी उत्पीड़न । (जयो०वृ० १ / ८४ ) स्त्रीधनम् (नपुं०) स्त्री सम्पत्ति ।
स्त्रीधर्मः (स्त्री०) नारी कर्त्तव्य । ० रजः स्राव धर्म । स्त्रीधर्मिणी (स्त्री०) रजस्वला स्त्री ।
स्त्रीनाथ (वि०) गृह मालकिन, गृहस्वामिनी। स्त्रीबन्धनम् (नपुं०) नारी निबन्धन का कार्य क्षेत्र, गृहिणी मर्यादा । प्रायोऽस्मिन् भूतले पुंसो बन्धनं स्त्रीनिबन्धनम्। (वीरो० ९/३० )
स्त्रीपण्योपजीविन् (पुं०) स्त्री से वेश्यावृत्ति कराकर जीविका
चलाना।
स्वीपर (पुं०) लम्पट कामी ।
स्त्रीपरीषहसहनम् (नपुं०) वावीस परीषहों में एक परीषह
सहन।
स्वीपिशाची (स्त्री०) राक्षसी प्रवृत्ति वाली पत्नी । स्त्रीपुंसलक्षणा (स्त्री०) पुरुष के लक्षणों से युक्त स्त्री
मर्दाङ्गिनी |
स्त्रीप्रत्ययः (पुं०) स्त्रीलिंग के प्रत्यय
स्त्रीप्रसङ्गः (पुं०) संभोग ।
स्त्रीप्रसूः (स्त्री०) पुत्रियों को जन्म देने वाली ।
स्त्रीप्रिय (पुं०) आम्र तरु
स्वीभावः (पुं०) स्त्रीलिंग (जयो० ) स्त्रीपर्याय (वीरो०
२२/३३)
स्त्रीमात्रसृष्टिः (पुं०) सम्पूर्ण स्त्रियों की सृष्टि । (जयो० ११ / ८४) स्त्रीभोगः (पुं०) संभोग | स्त्रीमन्त्र: (पुं०) स्त्री कौशल ।
१२१३
स्त्रीमुतपः (पुं०) अशोक वृक्ष।
स्त्रीयन्त्रम् (नपुं०) कर्तव्य परायण स्त्री, अधिक कार्य करने वाली स्त्री ।
स्वीरञ्जनम् (नपुं०) पान, ताम्बूल
स्त्रीरत्नम् (नपुं०) रमणी मणि, उत्तम स्त्री । (जयो०वृ० ३/६३) स्वीराज्यम् (नपुं०) महिलाओं द्वारा शासित प्रदेश स्त्रीरूप: (पुं०) महिला स्वरूप (मुनि० ९) नारी सौंदर्य । स्त्रीलिङ्गम् (नपुं०) स्त्रीलिंग की विशेषता । ० स्त्रीयोनि । स्त्रीवश: (पुं०) नारी की आधीनता । स्त्रीविधेय (वि०) पत्नी द्वारा शासित |
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्त्रीवेदः (पुं०) स्त्री के साथ विवाह । स्त्री के साथ परिणय । स्त्रीभङ्गभाव: (पुं०) स्त्री के प्रति कामभाव। (जयो०वृ०२/१०८) स्त्रीसंसर्ग: (पुं०) नारी संगति ।
स्त्रीसंस्थान (वि०) स्त्री की आकृति वाला।
स्त्री सम्बन्धः (पुं०) नारी से सम्बन्ध । दाम्पत्य जीवन, विवाह । परिणय |
स्थपतिः
स्त्रीस्वभाव: (पुं०) नारी की प्रकृति ।
स्त्रीहरणम् (नपुं०) नारी अपहरण |
स्वैण (वि० ) [ स्त्रिया इदम् नञ्] मादा, स्त्रीवाचक | स्थ (वि०) खड़ा होने वाला, ठहरने वाला। स्वकरणम् (नपुं०) सुपारी
स्थग् (सक०) ढांपना, छिपाना, गुप्त रखना । स्थग (वि०) (स्थग्+अच्) परित्यक्त, निर्लज्ज स्थगनम् (नपुं०) रद्द, छिपाना, गुप्त रखना। स्थगरम् (नपुं०) सुपारी।
स्थगिका ( स्त्री०) ( स्थग्ण्वुल्+टाप्] वेश्या, पण्णभोगी। स्थगित ( वि० ) [ स्थग्+क्त] छिपा हुआ, गुप्त, प्रच्छन्न, ढका हुआ, समाप्त, रद्द हुआ।
+
स्थगी (स्त्री० ) [ स्थग्क ङीप् ] पानदान, मचला। स्थगुः (पुं०) [स्थग्+उन्] कूबड़, कुब्ज। स्थण्डिलम् (नपुं० ) [ स्थल- इलच् लुक् लस्य ड] बंजर भूमि।
• वास्तुकार, रथकार ।
• बढ़ई, विश्वकर्मा |
० सारथि
० मध्यस्तूप (जयो० १० / ९०) स्थण्डिलं प्रासुकंस्थानम् । स्थपति: (पुं०) प्रभु राजा, स्वामी।
बृहस्पति ।
• अन्त: पुर रक्षक |
०
For Private and Personal Use Only