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स्तेनानीतादानम्
स्तेनानीतादानम् (नपुं०) तदाहृतादान। स्तेनानुज्ञा (स्त्री०) स्तेन प्रयोग, अचौर्याणुव्रत का एक अतिचार । स्तेनानुबन्धी (वि०) चौर्यांनन्द, दूसरे के द्रव्य हरण की ओर चित्त रहने वाला।
स्तनित (वि०) चुराने का भाव वाला, छिपाने का भाव रखने
स्तेयिन् (पुं०) [स्तेय + इनि] चोरी, लुटेरा । स्तै ( सक० ) पहनना, अलंकृत करना । स्तैनम् (नपुं० [स्तेन+अण्] चोरी, लूट स्तैन्यम् (नपुं० ) [ स्तेनस्य भावः ष्यञ् चोरी, लूट। स्तैन्यः (पुं०) चोर, लुटेरा ।
स्तैमित्यम् (नपुं०) [स्तिमित+ ष्यञ् ] स्थिरता, कठोरता ।
वाला।
स्तेय् (अक० ) रिसना, टपकना, झरना। स्तेम: (पुं०) [स्तिन्+घञ्] नमी, गीलापन ।
स्तेयम् (नपुं० ) [ स्तेनस्य भावः यत् न लोपः ] ० बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण, अदत्तादानं स्तेयम् (त०सू० ७/१५)
० प्रमाद योग से बिना दी गई वस्तु का ग्रहण | आदानं ग्रहणं अदत्तस्याऽऽदानं अदत्तादानं स्तेयमित्युच्यते (त०वा० २/१५) चोरी, लूट। (सुद० १३२) स्तेयत्यागवतम् (नपुं०) अचौर्याणुव्रत पर वस्तु के ग्रहण का भाव न रखना, चोरी का त्याग करना । स्तेनानन्द (वि०) स्तेनानुबन्धी, पर वस्तु का ग्रहण में आनन्द करने वाला । पर विषय हरणशील।
● जड़ता।
स्तोक (वि०) [स्तुच्+घञ् ] ० अल्प, थोड़ा। अल्प, कम। • छोटा, लघु।
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स्तोकः (पुं०) स्वल्पमात्र, बूंदभर ।
० सात उच्छवास प्रमाण ।
स्तोकम् (अव्य०) जरा सा थोड़ा सा किञ्चित् भी। स्तोककाय (वि०) छोटे शरीर वाला, बौना, वामन, ठिगना । स्तोकशः (अव्य० ) [ स्तोक+शस्] थोड़ा थोड़ा करके, कमी के साथ।
स्तोतव्य (वि० ) [ स्तुतव्यत्] श्लाध्य, प्रशंसनीय स्तोतृ (पुं०) [स्तु+तृच्] प्रशंसक, स्तुतिकर्ता । स्तोत्रम् (नपुं०) [स्तु+ष्ट्रन्] स्तुति, स्तवन, स्तव, स्तवक, गुणानुवाद, अर्चना, भक्ति
० प्रशंसा पाठ।
स्तोभः (पुं० ) [ स्तुभ्+घञ् ] रोकना, अवरुद्ध करना ।
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प्रार्थना,
० विराम, यति, विश्राम।
० निरादर, तिरस्कार।
• सूक्त, प्रशस्ति।
स्तोमः (पुं० ) [स्तु+मन् ] स्तुति, प्रशस्ति । ० संग्रह, समुच्चय, समूह । (जयो० १ / ७४ ) ० संख्या, संघात, ढेर |
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०
स्तोम्य (वि०) स्तोम यत्) श्लाघ्य, प्रशंसनीय।
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स्त्यान (वि० ) [ स्त्यै+क्त] ढेर के रूप में संचित ।
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घनीभूत ठोस, स्थूल पिण्डीभूत |
० मृदु, स्निग्ध, कोमल, चिकना । स्त्यायतीति स्त्यानं स्तिमितचित्त ।
स्त्रीकथा
स्त्यानम् (नपुं० ) ० स्वप्न - स्त्याने स्वप्ने । सुप्त अवस्था ! • सघनता, ठोसपना।
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• प्रतिध्वनि, गूंज ।
० चिकनाई, ढीलापन ।
स्त्यानगृद्धिः (स्त्री०) सुप्त अवस्था में विशेष सामर्थ्य स्त्याने स्वप्ने गृध्यते दीप्यते यदुदयात रौद्रं च बहु च कर्मकरणं सा स्त्यानगृद्धिः । (४०आ०वृ० २०५४)
सोते सोते ही, बेहोश अवस्था में ही जिससे बड़ी भारी ताकत प्रकट हो जाए ऐसी नींद को स्त्यानगृद्धि कहते हैं। स्त्यायति क्रिया के स्वाप अर्थ में ही गृद्धि / उत्तेजना होना । (त०सू० पृ० १२४, ८/७)
स्त्यायनम् (नपुंc) [स्त्यै + ल्युट् ] भीड़ लगाना, समूह बनाना । समष्टि ।
स्त्येन: (पुं०) [स्त्यै + इनच् ] ० अमृत, चोर | स्वागन्वेषयः (पुं०) मुनिधर्म । ( मुनि० ८)
स्त्री (स्त्री०) [स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम् स्त्यै+ड्रप् ङीप् ] महिला नारी औरत (जयो० २ / १४७, १४२, १४९ ) (सुद० १०२) दोषैरात्मानं परं च स्तृणति छादयतीति स्त्री । ( धव० २ / ३४०) प्रियोऽप्रियोऽथवास्त्रीणां कश्चनापि न विद्यते ।
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गावस्तृणमिवारण्येऽभिसरन्ति नवं नवम् ॥ (जयो० २ / १४७)
स्त्रियां सम्पद्गुणोत्कर्ष इत्यादि कोषात् (जयो०वृ० ६/५५) ० सहधर्मिणी, पत्नी। (जयो०वृ० १/१५) गौरी (जयो०वृ० १/१५) चेष्टा स्त्रियां काचिद (सुद० १०७) स्त्रीकथा ( स्त्री०) स्त्रियों सम्बंधी कथा । कथा के चार भेदों में
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