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सैरन्ध्रः
१२०४
सोमच्छल
सैरन्ध्रः (पुं०) [सीरं हलं धृति-सीर+धृ+क] किंकर, भृत्य।। सोन्माद (वि.) [सह उन्मादेन] मदविक्षिप्त, पागल, उन्मत्त, सैरन्धी (स्त्री०) किंकरी, दासी, परिचारिका, सेविका।
मदहोश। सैरिक (वि.) [सीर+ठक्] हल से सम्बंधित।
सोपकरण (वि०) [सह उपकरणेन] उपकरण युक्त, सुसज्जित। सैरिकः (पुं०) हाली, हल चलाने वाला बैल।
सोपद्रव (वि०) [सह उपद्रवेण] उपद्रव सहित, संकट ग्रस्त। सैष (अव्य०) वही-सैष इत्यत्र स चैष इति पादपूर्तीविधिः सोपध [सह उपधया] उपधा सहित, कपटी, छल से परिपूर्ण। (जयो० २७/६५)
सोपधि (वि.) [सह उपधिना] छली, कपटी, धूर्त। सो (अक०) ० वध करना, नाश करना, समाप्त करना।
सोपप्लव (वि०) [सह उपप्लवेन] संकटग्रस्त, आक्रान्त, ० परिणाम होना, निर्धारित होना, नष्ट होना, क्षीण होना।
भयाकुल। सोढ (भू०क०कृ०) [सह+क्त] सहन किया गया, भुगता गया।
सोपरोध (वि०) [सह उपरोधेन] अवरुद्ध, बाधायुक्त, अनुगृहीत। सोढुम्-अङ्गीकर्तुम् (वीरो० ६/७)
सोपसर्ग (वि०) [सह उपसर्गेण] उपद्रव युक्त, उपसर्ग युक्त, सोढ़ (वि०) [सह-तृच्] सहनशील, सहिष्णु।
संकट युक्त। ० शक्तिशाली, समर्थ, बलवान्।
सोपहारकरण (वि०) उपहार युक्त। (जयो० ) सोत्क (वि०) [सह उत्केन] अत्यन्त, उत्सुक, आतुर, आकुल,
सोपहास (वि.) [सह उपहासेन] व्यंगमय, उपलंभपूर्ण।
सोपहासम् (अव्य०) उपालंभपूर्वक। खिन्न। दुःखपूर्ण।
सोपाधि (वि०) [सह उपाधिना] उपाधि सहित। सोत्कण्ठ (वि०) उत्कण्ठा युक्त, उत्साहजन्य।
सीमित, मर्यादित। ० सलालसा। (जयो०वृ० ११/१)
सोपानम् (नपुं०) [उप+अन्+घञ्] उपानः उपरिगतिः सह ० आतुर, व्याकुल, खिन्न।
विद्यमान: उपान: येन। सीढी, जीना, पंक्ति। सोत्कण्ठम् (अव्य०) उत्साहपूर्वक।
सोपानततिः (स्त्री०) सोपान परम्परा। (सुद० २/१०) सोत्कण्ठमनस् (वि०) उत्साह युक्त मन वाला। (वीरो०१२/२६)
सोपानपंक्ति (स्त्री०) सीढ़ियां। (जयो० २४/७) सोत्प्रास (वि.) [सह उत्प्रासेन] व्यंगपूर्ण, अतिशयोक्तिपूर्ण।
सोपानपथः (पुं०) सीढ़ी, जीना। सोत्प्रासः (पुं०) अट्टहास, तीव्र ह्रास, व्यंगवचन।
सोपमार्गः (पुं०) देखो ऊपर। सोत्सव (वि०) [उत्सवेन सह] उत्सव युक्त, हर्ष से परिपूर्ण।
सोपानसम्पत्ति (स्त्री०) सीढ़ियां। (वीरो० ४/२७) सोत्साह (वि.) [सह उत्साहेन] प्रबल, सक्रिय, उत्साही,
सोपाहरत्व (वि०) अपहरण युक्त। (सुद० ९९) धीर। (सम्य० ९५) उत्साह सहित, उमंग से परिपूर्ण।
सोमः (पुं०) किरण, चन्द्र। सोत्सुक (वि०) आतुर, खिन्न, व्याकुल।
० पवन, वायु। सोमः समस्त्वेष सतां (जयो० १/३३) ० उत्कण्ठित, लालायित।।
वतंसः (जयो० ११/१४) सोत्सेध (वि०) [सह उत्सेधेन] उन्नत, ऊंचा, उत्तुंग।
० नाभि, चन्द्र। (सुद० ३/४०) सोदक (वि०) शीतल जल युक्त। (सुद० ८६)
० सोम राजा। (जयो० १/२५) जो जयकुमार के पिता थे। सोदर (वि०) [समानमुदरं यस्य] सहोदर, एक ही उदर से | सोम (वि०) यश, कीर्ति सौम्यता। उत्पन्न। (वीरो० ९/८)
सुन्दराकार। (जयो० १२/११८) (सुद०८७) सोदर्यः (पुं०) सहोदर भाई, सगा भाई।
सोमम् (नपुं०) आकाश, नभ, गगन। सोदाहरणप्रसिद्धिः (स्त्री०) उदाहरण सहित ख्याति। सोमकला (स्त्री०) चन्द्रकला। (जयो० ६/५६) (समु० १/३५)
सोमकान्तः (पुं०) चन्द्रकान्त मणि। सोद्योग (वि.) [सह उद्योगेन] परिश्रमी, उद्यमी, सक्रिय। सोमकुलप्रदीपः (पुं०) जयकुमार। (जयो० ६/१३१) धीर, मेहनती।
सोमक्षयः (पुं०) चन्द्रहास। सोद्वेग (वि०) [सह उद्वेगेन] आतुर, व्याकुल, शोक समन्वित, सोमग्रहं (नपुं०) सोमारस रखने का पात्र। दुःख से घिरा हुआ।
सोमच्छल (नपुं०) चन्द्र के ब्याज, शशि के बहाने। (जयो० सोनहः (पुं०) [सु+विच्+सो] लहसुन।
१/३३) सोमश्चन्द्रः तयोश्छलात् मिषात् (जयो० १/३३)
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