SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सर्वज्ञत्व सर्वज्ञत्व (वि०) सर्वज्ञपना (सम्य० ९३ ) + " सर्वज्ञासम्बन्धि (स्त्री०) सर्वज्ञ से सम्बन्धि (वीरो० २० / २३) सर्वतः (अव्य० ) [ सर्व तसित्] प्रत्येक दिशा से, (जयो० २/२७) सब ओर से चारो ओर से (सुद० ९१ ) सर्वदमन् (वि०) सब कुछ नष्ट करने वाला। सर्वनामन् (नपुं०) संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द । सर्वत्र (अव्य०) [सर्वत्र] प्रत्येक स्थान पर सब जगह पर (सम्य० ९२, १३३ ) " सर्वतोऽपि (अव्य०) सभी ओर से भी (जयो० ३/९) सर्वतोमुखम् (नपुं० ) ० जल । ० चुम्बन सर्वतोमुखं जलम् अर्थाच्च सर्वभावेन तव मुखं (जयो०वृ० १२ / १२९) ० नाम विशेष। (जयो० १४ / ५६ ) सर्वतोभद्रकः (पुं०) सभामण्डप (जयो० ३/७१ ) सर्वतोमुखं (नपुं०) जल, वारि । (जयो० १२ / १११ ) सर्वथा (अव्य० ) [ सर्वथाल्] हर प्रकार से, सब तरह से, पूर्णता, पूर्ण रूप से ( मुनि० ३) बिलकुल, नितान्त | सर्वदा (अव्य०) (सर्व+ दात्र] सदैव (मुनि० १४ ) हमेशा सर्ववित्क (वि०) सर्ववेत्ता । (वीरो० २०/२१) सर्ववेत्ता (वि०) सर्वज्ञ ० सर्वज्ञायक (वीरो० २० / ११) ० परमात्मन् (वीरो० १६ / २६ ) ० + · सर्वशः (अव्य० ) [ सर्व शस्] पूर्णत: पूरी तरह से सर्वत्र सर्वशावकसन्तति (स्त्री०) सर्वकाल वाला। (जयो०वृ० ३ / ५५ ) सर्वसत्त्वः (पुं० ) प्राणिमात्र । (वीरो० १२/४३) हितं प्रकर्तुं प्रति सर्वसत्त्वम् । सर्वसम्मत (वि०) पूर्णमान्य, सभी लोगों द्वारा स्वीकृत | (जयो० २/४४) O सर्वसाधारणं (नपुं०) सामान्य (जयो०वृ० १/८६) सर्वस्यदायक (वि०) सब कुछ देने वाली (जयो०वृ० १२/८७ ) सर्वस्यविनाशन ( वि०) मूल हरण (जयो० २ / ११० ) सर्वात्मप्रियः (पुं०) सभी आत्मीय जनों के लिए प्रिय (वीरो० १६/२७) सर्वानुकम्पा (स्त्री०) सभी जीवों के प्रति दया। सर्वाधि-व्याधिनाशक (वि०) समस्त आधि एवं व्याधि को नाश करने वाला (जयो० १९/८१ ) णमो मदु रसवीणं" सर्वारम्भ: (पुं०) सभी प्रकार का आरम्भ । (जयो० २० / ४१ ) सर्वार्थसिद्धिः (स्त्री०) तत्त्वार्थसूत्र की एक टीका । ११७० सलील जो भी प्रकार के अभ्युदय से सिद्धि को प्राप्त है। ० विशुद्धात्मस्वरूप की सिद्धि। ० वीतराग अवस्था की प्राप्ति । सर्वावधि (स्त्री०) जिसके विषय की अवधि समस्त विश्व है। सर्वं विश्वं कृत्स्नमवधिर्मर्यादा यस्य स बोधस्सर्वावधिः ' सर्वावधिज्ञानम् (नपुं०) सम्पूर्ण अवधि का बोध । (समु० ४/३१) सर्वावधिबोध: (पुं०) सर्वावधिज्ञान (समु० ४/३१) सर्वावधिमरणम् (नपुं०) सर्व मर्यादा पूर्वक मरण, जो प्रकृति, स्थिति, अनुभव एवं प्रदेश का उदय हो, वह बांधना । सर्वावयवः (पुं०) पूर्ण अवयव । (जयो०वृ० ३ / ७९ ) सर्वोदयतीर्थ (पुं०) निरपेक्ष तीर्थ सभी का कल्याणकारक ० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का स्थान। सर्वौषधिः (स्त्री०) एक ऋद्धि, जिसकी प्राप्ति पर समस्त औषधियां प्राप्त हो जाती हैं। सर्षपः (पुं०) सरसों सल् (सक०) जाना, पहुंचना । सलम् (नपुं०) [सल्+अच्] जल, वारि सलक्ष्मण (वि०) लक्ष्मण सहित । (जयो० १३/५९) अभिरामतया सलक्ष्मणा । • लक्ष्मण नामक औषधि सहित। सलक्ष्मण, लक्ष्मणा नाम सारस्यस्ताभिः सहिता । • लक्ष्मणेन च सहिता । (जयो०वृ० १३/५९) सलज्ज (वि० ) [ लज्जया सह] लज्जशील, विनम्र । ० सत्रप। सललितगेय (वि०) श्रोत्रेन्द्रिय को प्रिय लगने वाला गीत। सलव (लवेन सह) विलास सहित (जयो० १३/५९) सलालसा (वि०) लालसा सहित। (जयो० ११ / १) सोत्कठा । सलिलम् (नपुं० ) [ सलति गच्छति निम्नम् सल् + इलच् ] जल, वारि । (जयो ० १ / ५० ) ० पाताल (जयो०वृ० १/५०) सलिलक्रिया (स्त्री०) स्नान क्रिया । सलिलजम् (नपुं०) कमला सलिलनिधिः (स्त्री०) समुद्र, वारिधि । सलिलाशय (पुं०) तालाब, सरोवर सलिलोद्भवः (पुं०) कमल। (जयो० १८/९) सलील (वि०) ( सहलीलया] क्रीड़ा शील, स्वेच्छाचारी लीलायुक्त, प्रणयवान् प्रेमासक्त विषयी | For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy