________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सरस्वतीसंग्रह
११६८
सर्गः
शिखण्डिनीशिरोमणि। जिनवाणी। (जयो०वृ० १९, २४, २५, २६) शारदा (जयो० १९/२९) सिद्धिदा (जयो० १९/३२) नदी (जयो० ५/१०७, ५/११०) गाय।
श्रेष्ठ स्त्री। ०बोली, वचन। सरस्वतीसंग्रह (पुं०) सरस्वती का ग्रहण, काव्य रचना। (समु०
१/१२) सराग (वि०) [सह रागेण] राग युक्त, प्रेम से परिपूर्ण, मुग्ध,
आसक्त। राग परिणाम सहित, जो संसार के कारणों को छोड़ने
में उद्यत है पर छोड़ नहीं पाता। (सम्य०८६) (सुद०८४) सरागचर्या (स्त्री०) राग सहित चर्या।। सरागचारित्रम् (नपुं०) कषाय जन्य चारित्र, संज्वलन और नो
कषाय के उदय से जो चारित्र होता है। सरागसम्यक्त्वम् (नपुं०) जो तत्त्वार्थ श्रद्धान प्रशम, संवेगादि
गुणों से जाना जाता है। सरागसंयमः (पुं०) राग सहित संयम। सराव (वि.) [सह रावेण] शब्द करने वाला, कोलाहल
करने वाला। सरावः (पुं०) ढक्कन, आवरण।
०सकोरा, तश्तरी। सरिः (स्त्री०) [सृ+इन्] झरना। प्रवाह, स्रोत। सरित् (स्त्री०) [सृ+इति] नदी, सरिता। (सुद० १०४)
(जयो०१३/५६) प्रवाहिनी, कल्लोलिनी।
०धागा, सूत्र। सरित्सुवेशिनी (वि०) नदी रूपवती। (जयो०७० ३/१०)
विभङ्गदेशिनी, तरंगधारिणी (जयो०७०३/१०) सरिद्भवदुर्मी (स्त्री०) नदी में उत्पन्न तरंग। (जयो० १४/१९) सरित्भर्तृ (पुं०) समुद्र, उदधि। सरिवृत्तिः (स्त्री०) नदी तट। सरितो नद्या वृती चोभयपार्श्वतती
(जयो० १३/५७) सरिदवलम्बनामकचक्रबन्धः (पुं०) छन्द प्रतिपादन की एक
पद्धति। (जयो० १४/५६)
सरिमन् (पुं०) [स-ईमनिच्] गति, सरकना।
०पवन, वायु। सरिलम् (नपुं०) [सृ+इलच] जल। ०वारि, अप, आप। सरीसतिः (स्त्री०) शीत की अधिकता। (वीरो० ९/३५) सरीसृपः (पुं०) सर्प, सांप, रेंगने वाला जंतु। सरुः (पुं०) [स+उन्] तलवार की मूठ। सरूप (वि०) [रुषेन सह] रोष युक्त। (जयो० ६/६७) सरूप (वि०) रूप युक्त, समान रूप वाला। सरोजम् (नपुं०) कमल। (सुद० २/३२) सरोजराजि (स्त्री०) कमल समूह। (जयो० १०/११८) कमल
श्रेणी। (जयो० ५/७९) सरोजवीरुधा (स्त्री०) कमलिनी। (जयो० १७/७७) सरोजिनी (स्त्री०) कमलिनी/कमलवल्ली।
सरोजिनी नायडू। (जयो० १८४८३) सरोजिनी सौरभम् (नपुं०) कमलिनीगंधा (वीरो० १२/२२) सरोब्जवृन्दः (पुं०) कमल समूह। (जयो० १२/१४०) सरोगः (पुं०) तटाक, तालाबा मराल एवान्वयते सरोगः, परं
मुरल्यां विवरप्रयोगः। (समु० ६/७) सरोरुहम् (नपुं०) कमल। (सुद० २/३३) (जयो० १/९३) सरोवरः (पुं०) जलाशय, तालाब, (समु०५/१५) (सुद०२/४५)
(जयो० ३/२४, १/४३) सरोवरजलम् (नपुं०) जलाशय का जल। (जयो० ४/५९)
विशिष्टं नीरं सरोवरजलम्। सरोवरभङ्गः (पुं०) सरोवरस्य भङ्ग। (जयो० ४/५९) तरङ्ग। सरोवरी (स्त्री०) हंसिनी, तडांगी। (जयो० १३/१८) अधिपस्य
बभौ तनूदरी विलसद्धंसवयाः सरोवरी:। (सुद० ३/३)
तलैय्या (समु० ३/१३) सरोष (वि०) [सह रोषेण] रोषपूर्ण, क्रोधित, कुपित। सरोषदोषः (पुं०) रोषपूर्ण, दोष। (जयो० १७/५४) सर्कः (पुं०) [सृ+क] पवन, वायु, हवा।
०मन। सर्गः (पुं०) [सृज्+घञ्] निर्माण। (जयो० ११/४५) (जयो०
११/८४)
अध्याय-देशादेपतेश्च वर्णपरः सर्गोऽयमाद्योऽनकः। (सुद० पृ० ४७)
For Private and Personal Use Only