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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्मूर्छित ११६४ सम्यगञ्जलित्व ०पूर्ण व्याप्ति। व्यथावत्, यथोचित। (जयो०वृ० १/२४) ऊंचाई। उत्तम (सुद० २/९) शरीर की रचना विशेष। वास्तव में, यथार्थ में समीचीन। (जयो० १२/१४६ ) सम्मूर्छित (वि०) मरणोन्मुखी। (जयो०७/१०९) मूर्छायुक्त। (सम्य० ५७) (दयो० ९३) समञ्चतीत्येव हि सम्यगस्ति। (सम्य० १६) [सं+अञ्च] सम्मूछिमः (पुं०) सम्मूर्छिम जीव, जो जीव सब होर से जो सहज स्वभाव में परिणमन हो-समञ्चति गच्छति पुद्गलों को ग्रहण कर उत्पन्न होते हैं। व्याप्नोति सर्वान् द्रव्य भावानिति सम्यक्। सम्मृद् (सक०) [सम्+मृद्] पादमर्दन करना, पैर दबाना। सम्यक्-कथा (स्त्री०) समीचीन कथा-सम्यक् समीचीना कथा (जयो० २३/१६) यस्य तं संविभागीकृतम्। (जयो० २/११०) सम्मृष्ट (भू०क०कृ०) [सम्+मृज्+क्त] प्रमार्जित, स्वच्छ सम्यक्-कल्याणकारी (वि०) उत्तम हित करने वाला। किया गया। (जयो०वृ० २/१) सम्मेलनकः (पुं०) सम्मेलन, मिलाप, एकत्रित होना। (जयो० । सम्यकशुद्ध (वि०) शोभनरीति युक्त। सम्यक् शोभनरीत्या वरं ८/६५) श्रेष्ठं मस्तकपर्यन्तमित्यर्थः। (जयो० १८/२६) सम्मेलनम् (नपुं०) सम्मेलन, मिलाप, एकरूप। परस्पर मिलन सम्यक्चारित्रम् (नपुं०) उत्तम चारित्र, सर्वसावध योग रहित __ (सम्य० २१) (जयो० २।८३) चारित्र। सम्मोचनम् (नपुं०) स्वार्थवश। (दयो० ९९) रागादि परिहरण रूप चारित्र। सं+अञ्च-अञ्चगतिपूजनयो:-इस आर्षवाक्यानुसार गमन | सम्यक्दर्शनम् (नपुं०) उचित श्रद्धान, वस्तु तत्त्व के प्रति पूर्ण करना/पूजन करना होता है। श्रद्धा। (सम्य०६०) समञ्चति अर्थात् जो अच्छी तरह से गमन होता है अपने सम्यक्त्वम् (नपुं०) तत्त्वश्रद्धानभाव। (जयो० ६/८३) सहज स्वभाव में परिणमन कर रहा हो वह 'सम्यक्' ऐसे समाचतीत्येव हि सम्यगस्ति, तत्त्वं तु सद्भाव इति प्रशस्तिः। क्विप् प्रत्यय होकर शब्द बन जाता है। गत्यर्थक से जो (सम्य०४) पूर्ण रूप से सम्पूर्ण विश्वभर के पदार्थों को एक साथ ०सम्यक् पना (सम्य० ५९) सं अञ्च तद्भावस्तत्त्वम् जानता है वह सम्यक् है। (सम्य०५) सम्मोहः (पुं०) [सम्+मुह+घञ्] आसक्ति, ०अत्यन्तमूढता, सम्यक्त्वक्रिया (स्त्री०) सम्यक्त्ववर्धिनी क्रिया। किं कर्त्तव्यत्व मूढत। सम्यक्त्वबोधः (पुं०) सम्यक्त्व/सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान। मूर्छा, बेहोशी। (भक्ति० १) ०मूर्खता। सम्यक्त्वसारशतकम् (नपुं०) ग्रन्थ नाम-आचार्य ज्ञानसागर ०आकर्षण। प्रणीत। सम्मोहदंशः (पुं०) मोह रूपी डांस मच्छर। (वीरो० २०/९) | सम्यक्त्वसारदीपकः (पुं०) आचार्य ज्ञान सागर का एक सम्मोहनम् (नपुं०) [सम्+मुह+णिच्+ ल्युट्] मंत्रमुग्ध करना, सम्यक्त्व से सम्बंधित शातक। मोहित करना। (दयो० १०८) सम्यश्रद्धानम् (नपुं०) समीचीन श्रद्धान। (हित० २५) सम्मोहनः (पुं०) कामदेव का एक बाण। सम्यकश्रुतम् (नपुं०) सर्वज्ञ प्रणीत शास्त्र। सम्मोद (वि०) रोमहर्ष युक्त। (जयो० १२/१२) सम्यग्रीति (स्त्री०) उचित पद्धति। (जयो०वृ० १/१२) सम्मोहिनी (वि०) मनोमोहकारी। (जयोवृ० ११/७०) सम्यग्ज्ञानिन् (वि०) सम्यक् ज्ञानी। (जयो० १/१) सम्यक् (अव्य०) भली प्रकार, अच्छी तरह के साथ, अच्छा सम्यगुत्थानम् (नपुं०) उन्नतशाही। (जयो०वृ० १/७९) उचित रूप से। (सुद० १/३६) सम्यगञ्जलित्व (वि०) हस्तसंयोगजन युक्त। (जयो०२०/७७) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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