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सम्मत
११६३
सम्यक्त्वम्
सम्मत (भूक०कृ०) [सम्+मन्+क्त] ०मत (जयो० २/६९) |
सहमत, स्वीकृत। प्रिय। ०सम्बन्ध। (मुनि० ३३) अभिलाशा। ०मान्य, स्वीकार। (जयो० २/११) 'अहो विद्यालता सज्जनैः सम्मता' (सुद० ८२)
०आहत, सम्मानित, प्रतिष्ठित। सम्मतिः (स्त्री०) [सम्+मन्+क्तिन्] सहमति, समर्थन,
अनुमोदन। नाम्न्येनैव न शेमुषीश पुनरप्येषाऽहित मे सम्मतिः | (मुनि० ३३)
स्मरण, स्मृति। (जयो० १०/६२) समुत्तिष्ठ् (अक०) उठना। कथमिति समुत्तिष्ठेत्तस्य।
(दयो०८१) सम्मतिदात्री (वि०) सम्मति देने वाली, 'सम्मतिं ददातीत्यु
चितसम्मतिदात्री' (जयो०वृ० २२/३७) सम्मदः (पुं०) [सम्+मद्+अप्] ०आनन्द एतद्गुणानुवादादासादितसम्मदेव सा तनया (जयो० ६/७०) हर्ष (सम्मदेन सहसा समवापि) (जयो० ५/५५)
आनन्द विभोर। सम्मदाबुनिधि (पुं०) आनन्द रूपी समुद्र। निजबन्धुजनस्य
सम्मदाम्बुनिधिं स्वप्रतिपत्तितस्तदा (सुद० ३/२७) सम्मर्दः (पुं०) [सम्+मृद्+घञ्] घर्षण, मर्दन, घिसना।
कुचलना, रौंदना। ०जनसंघट्टन। (जयो०वृ० १३/१५)
संग्राम, युद्ध। सम्मादः (पुं०) [सम्मद्+घञ्] मद, दशा, पागलपन। सम्मानः (पुं०) [सम्+मन्+घञ्] आदर, प्रतिष्ठा।
विनय। (जयो०७० ६/१५) सम्मानजनक (वि०) आदर योग्य। सम्मानीय (वि०) पूजनीय, आदरणीय, पूज्य। (भक्ति० २३) | सम्मानपूर्वक (वि०) विनयपूर्वक। (समु० ३/४२) सम्मानभावः (पुं०) आदर भाव। सम्मानयामास-सम्मान क्रिया। (वीरो० १८/४७) सम्मानयुक्त (वि०) आदर सहित। सम्मानसुखदमंत्रम् (नपुं०) प्रतिष्ठा जनक मन्त्र। णमो
वड्ढमाणाणं, णमो लोए सव्वसिद्धायदणणं' (जयो०१९/८३)
सम्मानित (वि०) [सम्+मन्+क्त] पूजित, प्रतिष्ठित, आहत।
सन्धानकाले तु शरस्य तस्य सम्मानितोऽभूत् स्वहृदा स
वश्यः। (जयो०८/८०) सम्मार्जकः (पुं०) [सम्+मृज्+ण्वुल्] झाड़ने वाला, बुहारी
लगाने वाला।
सफाई करने वाला। सम्मार्जनम् (नपुं०) [सम्+मज+ल्यूट] बुहारना, मांजना
०साफ करना। सम्मार्जनी (स्त्री०) [सम्मार्जन+ङीप्] झाडू, बुहारी। सम्मित (भू०क०कृ०) [सम्+मान्+क्त] युक्त, सहित।
माप युक्त। सम्मिलनम् (नपुं०) सम्मेलन। (जयो० ४/४७) परस्पर मेल
(सम्य० २३) सम्मिश्र (वि०) [सम्+मिश्र+अच्] मिलाया हुआ, संयुक्त
किया गया। सम्मिश्रणम् (नपुं०) मिलाना, मिश्रण करना। (वीरो० १९/३०) सम्मिश्लः (पुं०) इन्द्र, पुरन्दर। सम्मीलनम् (नपुं०) [सम्+मील+ल्युट] बन्द होना, ढकना,
लपेटना। सम्मुख (वि०) सामने, अभिमुख, मुख की ओर। सम्मुखिन (वि०) सन्मुख, सामने। (जयो० १/७९) सम्मुखिन् (पुं०) [सम्मुखमस्य अस्ति सम्मुख-इनि] दर्पण,
शीशा। सम्मुख्य (वि०) निश्चय युक्त। (भक्ति० २९) सम्मुद (वि०) हर्ष युक्त, प्रसन्नता। (जयो० ९/३) सम्मूर्धनम् (नपुं०) [सम्+मूर्छ+ल्युट्] सम्यक (अव्य०) समञ्चतीत्येव हि सम्यगस्ति, तत्त्वं तु तदभाव
इति प्रशस्ति। (सम्य० ५/४) सम्यकभाषी (वि०) उचित बोलने वाला। (वीरो० २०/६) सम्यक्त्वम् (नपुं०) सम्यक्पना, आत्मा की शुद्ध अवस्था,
सर्वज्ञता, वीरतरागता। स सम्यक+त्वसम्यक्त्व'तद्दर्शन-ज्ञान-चरित्रभेदं, प्रणीयते पूर्णतया मयेदं। मुक्ते: स्वरूपं परथा तदध्वायतोऽभ्यधीता खलु तीर्थकृद् वाक्।। (सम्य०५) ०मूर्छा, बेहोशी।
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